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. इन सभी चक्रवतियों का शरीर स्वर्णमय था।
सूत्र
सप्तांगालि तर
राजा, ग्रामाधिपति, जनपद, दुर्ग, भंडार, षडंगवल तथा मित्र, ऐसे चक्रवर्ती के सात अंग होते हैं।
षडंग बल ये हैं..--चक्रवल, ८४००.०० भद्र हाथी, उतने ही रथ, १८ करोड़ उत्तम नस्ल के घोड़े, ८४ करोड़ वीर भट, अनेक देव बल, अनेक विद्याधर इस प्रकार षडंग बल होता हैं।
सूत्र---
चतुर्दश रत्नानि ॥१७॥ चक्र, छत्र, असि, दंड, मरिण, काकनी और चमं ये सात रत्न अचेतन हैं।
गृहपति, सेनापति, गजपति, अश्व, स्थपति, पुरोहित तथा स्त्री रल, ये सात चेतन रत्न हैं । इस प्रकार इन चौदह रत्नों को महा रत्न कहते हैं । और इनकी एक-एक हजार यक्ष रक्षा करते हैं। अब आगे उनकी शक्ति को बतलाते हैं। चक्रवर्ती के प्रति यदि कोई प्रतिकूल हो जाता है तो उसका सिर चक्ररल के द्वारा उसी समय हाथ में आ जाता है । सम्पूर्ण धूप, वर्षा, धूलि, अोले, तथा वनादि की बाधा को दूर करने के लिये छत्र रत्न होता है ।
३-चक्रवर्ती के चित्त को प्रसन्न करने वाला असि रत्न होता है ।
४-०४८ कोस प्रमाण समस्त सेना को भूमि के समतल करने वाला दह रत्न होता है।
५ जो इच्छा हो उसे पूरा करने वाला मरिण रत्न होता है ।
६ जहाँ अंधेरा पड़ा हो वहाँ चन्द्र सूर्य के प्राकार को प्राप्त कर प्रकाय करने वाला काकिनी रत्न होता है।
७ नदी नद के ऊपर कटक को पार करने के लिये चर्म रत्न होता है।
८ राज भवन की समस्त व्यवस्था करने के लिए गृहपति रत्न होता है ।
प्रायं खंड के अतिरिक्त पांच म्लेच्छ खंडों को जीतने वाला सेनापति • रत्न होता है।
१० चक्री के जितने भी हाथी हैं उनको जीतकर हस्तगत करने वाला सबसे मुख्य हाथी गज रत्न होता है।
११ तिमिश्रगुफा के कपाट स्फोटन समय में जब उसमें से ज्बाला
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