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________________ D ( ६५ ) ध्वजायें होती हैं। चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में इन दस प्रकार की ध्वजाओं में से एक-एक प्रकार की ध्वजा एकसी प्राठ २ होती हैं । जो सुवर्ण के स्तम्भों में लगी हुई होती हैं और मन्द मन्द वायु से हिलती रहती हैं । उन ध्वजदंडों की ऊंचाई २५ धनुष और मोटाई ८८ अंगुल की होती है । इह के एक महाध्वजा के प्रति एकसौ आठ २ क्षुद्र ध्वजायें हुआ करती हैं । ये महाध्वजायें चारों दिशाओं की मिलकर कुल ४३२० होती हैं । और इनको क्षुद्र ध्वजायें ४६६५६० होती हैं | सब ध्वजायें मिलाकर ४७०८८० हो जाती हैं । इसके आगे एक स्वर्णमय परकोटा श्राता है। जिसके चारों ओर ४ दरवाजे होते हैं । जिनमें स्वर्ण और मणियों से बनी हुई सीढ़ियाँ लगी रहती हैं । वहाँ पर नागेन्द्र नामक देव द्वारपाल का कार्य करते हैं । कानडी श्लोक: देवोत्तर कुरुगळकल्पावनिजातंगळे ल्लमिदलन्तदक । स्पायनिज के इल्लेने, देवरकल्पावनीतलंसोगमिगु ॥१५॥ उसके प्रागे कल्प वृक्षों का वन आता है । उन वनों में कल्पनातीत शोभा वाले दस प्रकार के कल्प वृक्ष होते हैं जोकि नाना प्रकार की लता वल्लियों से वेष्टित रहते हैं । उसमें कहीं कमल होते हैं, कहीं कुमुद खिले हुये होते हैं, जहाँ देव विद्याधर मनुष्य क्रीड़ा किया करते हैं, ऐसी कीड़ा - शालायें होती हैं । इस कल्प-वृक्षों संतानक, और तीन कोटों से युक्त चारों दिशाओं में कहीं पर उत्तम जल से भरी हुई वापिकाय होती हैं। के वन में पूर्वादिक चारों दिशाओं में क्रम से नमेरु, मन्दार, पारिजात नामक चार सिद्धार्थ वृक्ष होते हैं । ये वृक्ष भो श्री लोन मेखलाओं से मुक्त होते हैं । जिनके मूल भाग में चार प्रतिमायें होती हैं। जोकि बन्दना करने मात्र से भव्यों के पापों को नष्ट कर देती हैं । इन सिद्धार्थं वृक्षों के समीप में ही नाट्यशाला, खूप कुंभादि सर्वं महिमा पूर्वोक्त कथनानुसार होती है। यह कल्पवन एक योजन विस्तार में होता है। अब इसके आगे एक स्वर्णमय वेदी बनी हुई होती है । यह भी पूर्वोक्क प्रकार चारों ओर चार दरवाजों से युक्त होती है। इसके आगे भीतर की ओर भवन भूमि प्राती है । जहाँ पर सुरमिथुन गोत नृत्य जिनाभिषेक, जिन स्तवन वगेरह करते हुए प्रसन्नता पूर्वक रहते हैं ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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