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________________ गाथा... .. सूत्रः— LC (६) घातिचतुष्टयाष्टादशदोषरहिताः ॥१०॥ अर्थ---ज्ञानावरण, दर्शनावरण. मोहनीय और अन्तराय ये चार घातिया कर्म हैं । क्षुधा, तृष्णा, भय, द्वेष, राग, मोह, चिन्ता, वृद्धावस्था, रोग, मरण, स्वेद, खेद, मद, रति, विस्मय, जन्म, निद्रा और विषाद ऐसे १८ दोष हैं । इस प्रकार १८ दोष और ४ घातिया कर्मों से रहित केवली अर्हन्त होते हैं । -गाथा... सूत्र- कालवसादोजोखवाया य दुस्समय काले । अविनदुनेदाविय असूय कोतसयपायेण ॥ सत्तचरणहमदहं संजुत्तोसंगार उसहि । कलहपियारागितो कुरो कोहाणु घोलोहि ॥ नारयति रयदुधावरछाव बुभउजोए घाति उतियं । साहरणं चतिसट्टिपयडिरिंगमुक्कोजिरगो जयऊ ॥ हतपाभिरु रोसोरागो चिंताजरारुजामच्च । खेदसेदं मदोरह मोह जगुठभेग रित्पानोखिदा ।। समवशरणैकादश भ्रमयः ॥११॥ · अब आगे समवशरण में होने वाली ग्यारह भूमियां बताई जाती हैं । घरनिविडं द्वादश यो, जन विस्तृत मिन्द्रनीलमणिमय मतिरुतं । धनवकृतं नेलसिदुदु, घरणपथ दोळ समवशरण भूमिविभागं ॥ १२ ॥ वह समवशरण इस भूमंडल से ५००० धनुष ऊपर जाकर आकाश में सूर्य और तारागण के समान प्रतीत होता है। उसकी चारों दिशाओं में पादलैप औषधि के समान मरिमय २० हजार सीढ़ियों की रचना रहती है। वह समवशरण १२ योजन के विस्तार में होता है। जिसकी प्रांगन भूमि इन्द्र नीलमरिण निर्मित होती है । वह समवशरण अनुपम शोभा सहित होता है । जिसके अग्रभाग में प्रासाद चैत्य भूमि १, जलखातिका २, वल्लीवन ३, उपवन ४, ध्वजा माला कुवलय भूमि ५, कल्प वृक्ष भूमि ६ भवन सन्दोह (समूह) भूमि ७,
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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