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मोक्ष कल्याणक केवल ज्ञान हो जाने पर भाव मन नहीं रहता अतः चित्त का एकाग्र रहने रूप ध्यान यद्यपि नहीं रहता किन्तु फिर भी कर्म निर्जरा की कारागभूत सूक्ष्म क्रिया केवल ज्ञानी के होती रहती है । वही सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती नामक तीसरा शुक्लध्यान है । केवल ज्ञानी की प्रायु मब अ, इ, उ, ऋ, लू, इन पाँच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण काल के बराबर रह जाती है । तब उनकी शरीर वचन योग की क्रिया बन्द हो जाती है । यही बौदहवाँ प्रयोग केवली गुणस्थान है और इस तरह योगनिरोध से होने वाला शेष चार अघाती कर्मों [वेदनीय, प्रायु, नाम, गोत्र] का नाश कराने वाला व्युपरत क्रिया निवृत्ति नामक चौथा शुक्ल ध्यान होता है। पांच ह्रस्व [एक मात्रा वाले] अक्षरों के उच्चारण योग्य स्वल्प काल तक चौदहवें गुरणस्थान में रहने हो परनाद सापरत शे? लाई नष्ट होने से पूर्ण मुक्ति हो जाती है। तदनन्त र यह लोक के सबसे ऊंचे स्थान पर सदा के लिये विराजमान हो जाते हैं । उस समय उनका नाम सिद्ध हो जाता है। मोक्ष हो जाने पर देवगए पाकर महान उत्सव करते हैं वह मोक्ष कल्याणक है। अब तीर्थंकरों के मोक्ष कल्याणक की तिथियाँ बतलाते हैं -
१ माघ कृष्णा चौदश के दिन पूर्वाग्रह समय उत्तराषाढ नक्षत्र में आदिनाथ भगवान १००० मुनियों के साथ मोक्ष गये।
२ चैत्र सुदी पंचमी को पूर्वाण्ह काल में भरणी नक्षत्र में अजितनाथ तीर्थकर मोक्ष गये।
३ चैत्र सुदी छठ को अपरान्ह काल में मृगशिरा नक्षत्र में संभवनाथ सीर्थकर मोक्ष गये।
४ वंशाख सुदी सप्तमी को पूर्वाण्ह कालमें पुनर्वसु नक्षत्र में अभिनंदन नाथ का मोक्ष हुई।
५ चैत्र शुक्ला दशमी को अपराण्ड्काल में मघा नक्षत्र में सुमतिनाथ को मोक्ष हुई।
६ फागुन कृष्णा चौथ को अपराम्ह काल में चित्रा नक्षत्र में पद्म प्रभु को मोक्ष हुई।
७ फागुन वदी षष्ठी को पूर्वाहकाल में अनुराधा नक्षत्र में ५०० 'मुनियों के साथ सुपाश्र्वनाथ भगवान को मोक्ष हुई ।
८ भाद्रपद सुदी सप्तमी को पूर्वाग्रहकाल में ज्येष्ठा नक्षत्र में चन्द्रप्रभु भगवान को मोक्ष हुई।