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भगवान महावीर स्वामी ने अकेले ही दीक्षा ली थी।
बाकी १६ तीर्थंकरों के दीक्षा लेते समय प्रत्येक के साथ एक-एक हजार राजाओं ने दीक्षा ली थी।
जिस समय तीर्थंकर दीक्षा लेते हैं उस समय संसार में अपने से बड़ा अन्य व्यक्ति न होने के कारण स्वयं ही 'ऊं नमः सिद्धेभ्यः' कह कर दीक्षा लेते हैं। उन्हें तत्काल मन: पर्यय ज्ञान प्राप्त हो जाता है । दीक्षा कल्याणक के एक वर्ष बाद इक्षुरस' से भगवान् ऋषभदेव ने पारणा की । बाकी तीर्थंकरों ने दूध से चौथे दिन में पारणा की। समस्त तीर्थंकरों की पारणा के समय उत्कृष्ट १२ करोड़ ५० लाख तथा [कम से कम ] ५ लाख २५ हजार रत्नों की वृष्टि हुई । दाता के परिणाम के अनुसार ही रत्नों की वृष्टि कम अधिक होती है । इसके सिवाय सुगन्ध जल वृष्टि, पुष्प वृष्टि प्रादि पांच पाश्चर्य तीर्थंकर के भोजन करते समय होते हैं । तत्पश्चात् वे तपस्या करने वन पर्वत श्रादि एकान्त स्थान में चले जाते हैं अथवा मौनपूर्वक देश देशान्तरों में विहार करते रहते हैं ।
छद्मस्यकाल उसहावीसु वासा सहस्स वारस चउद्दसहरसा। वीस छदुमत्यकालो छच्चिय पउमप्पहे मासा ॥६७५ वासारिण राव सुपासे मासा चन्दप्पहम्मितिणि तदो। चदुतिदुबक्का तिदुइगि सोलस चउवगाचउकवी वासा ।६७६। मल्लिजिणे छद्दिवासा एक्कारस सुव्वदे जिणे मासा । गमिसाहे रणव मासा दिरणारिण छप्पण्ण एमिजिणे ।६७७। पासजिणे चउमासा वारस यासारिण वटुमाजिणे। एत्तिय मेते समये केवलगार उप्पण्णं । ६७८ ।
तिलोयपण्णति (च. प्र.) मुनि दीक्षा लेने के अनन्तर भगवान ऋषभनाथ आदि २४ तीर्थकर छद्मस्थ अवस्था [ केवल ज्ञान होने से पूर्व दशा ] में निम्नलिखित समय तक रहे--
अर्थ-भगवान ऋषभनाथ को मुनि दीक्षा लेने के अमन्तर १००० वर्ष तक केवल ज्ञान नहीं हुमा यानी तब तक वे छद्मस्थ रहे। अजितनाथ १२ वर्ष , संभवनाथ १४ वर्ष , अभिनन्दन नाथ १८ वर्ष, सुमतिनाथ २० वर्ष', पद्मप्रभ ६ मास, सुपार्श्वनाथ ६ वर्ष, 'चन्द्रप्रभ ३ मास, पुष्पदन्त ४ वर्ष, शीतलमाथ
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