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________________ अपने स्वस्थ प्रसन्न जीवन से स्वपर कल्याण करमे में अग्नसर रहें, ऐसा हमारा शुभाशीर्वाद है। इस ग्रन्थ के सम्पादन में पं. अजितकुमार जी शास्त्री, सम्पादक जनगजट तथा पं० रामशंकर जी त्रिपाठी वस्तो ने अच्छा सहयोग दिया है । एवं अनेक स्थलों पर मल्लिका विशालमती ने सहायता की है, एतदर्थ उन्हें भी शुभाशीर्वाद है। हमारे सामने सुननार सिवान गनुवाद का भी महान कार्य है, उसमें भी हमारा पर्याप्त समय तथा उपयोग इसी अवसर पर लगा रहा, साथ हो उन दिनों में बिहार भी होता रहा, इस कारण शास्त्र सार समुच्चय के अनुवाद कार्य में त्रुटियां रह जाना सम्भव है विद्वान गरा उन अटियों को सुधार कर अपन कर्तव्य का पालन करें, ऐसा हमारा अनुरोध है । - भगवान महावीर का शासन विश्वव्यापी हो मानव समाज दुगुण दुराचार छोड़कर सन्मामैगामी बने और विश्व की अगान्ति दूर हो, हमारी यही भावना है। [आचार्य श्री १०८] देशभूषण [जी महाराज] [दिल्ली चातुर्मास] शास्त्रसार समुच्चय प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'शास्त्रसार समुच्चय' जिसका विषय उसके नाम से स्पष्ट है। इस ग्रन्थ में प्राचार्य महोदय ने उन सभी विषयों की चर्चा की है जिनको जानने की अभिलाषा प्रत्येक श्रावक को होती है । इसमें ज्योतिष, वैद्यक-जैसे लौकिक विषयों की भी चर्चा की गई है । ग्रन्थ की टीका कानडी भाषा में की गई है । सूत्रों के रचयिता प्राचार्य माधनन्दि योगीन्द्र हैं । जो वस्तु-तत्व के मर्मज्ञ, महान् तपस्वी और योग-साधना में निरत रहते थे। इतना ही नहीं किंतु ध्यान और अध्ययन प्रादि में अपना पूरा समय लगाते थे । और कभी-कभी भेदविज्ञान द्वारा प्रात्मस्वरूप को प्राप्त करने तथा आत्म-प्रतीति के साथ स्वरूपानुभव करने में जो उन्हें सरस अानन्द आता था उसमें वे सा सराबोर रहते थे । जब कभो उपयोग में अस्थिरता पाने का योग बनता तो आचार्य महोदय तत्त्वचितन और मनन द्वारा उसे स्थिर करने का प्रयत्न करते । और फिर ग्रन्थ
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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