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________________ *F: (४) देने पर (१२० - २०-२१७०७:२३) प्रायु की हानि वृद्धि का मारण होता है। :: ..:: : शक राणा के वर्षों से सहित ५६१: वर्ष प्रादि को २१० से भाग देने पर जो लब्धि प्रावें उसको १२० में से कम करने पर जो शेष रहे इतना उस राजा के समय में प्रवर्तमान उत्कृष्ट प्रायु का प्रमाण है । यह युक्ति अन्य सब राजाओं में से प्रत्येक के समय में भी जाननी चाहिये। xहुण्डावसर्पिणी के कारण कुछ हेर फेर हो जाता है। ६०+ १५५+ ४०+३०+६०+१००+४०+२४२+२३१+४२ = १००० वर्ष। ___ आचारांगधरों के पश्चात् दो सौ पचहत्तर वर्षों के व्यतीत होने पर कल्की नरपति को पट्ट बांधा गया था । ६८३+२७५+४२ - १००० बर्ष । तदनन्तर वह कल्की प्रयल पूर्वक अपने योग्य जनपदों को सिद्ध करके लोभ को प्राप्त होता हुआ मुनियों के आहार में से भी प्रापिण्ड को शुल्क रूप में मांगने लगा। तब श्रमण (मुनि) अग्रपिण्ड को देकर और 'यह अन्तरायों का काल है', ऐसा समझकर (निराहार) चले गये। उस समय उनमें से किसी एक को अवधि ज्ञान उत्पन्न हो गया । इसके पश्चात् किसी असुरदेव ने अवधि ज्ञान से मुनिगणों के उपसर्ग को जानकर और धर्म का द्रोही मानकर उस कल्की को मार दिया। तब अजितंजय नामक उस कल्की का पुत्र 'रक्षा करों' इस प्रकार कह कर उस देव के चरणों में गिर पड़ा । तब वह देव 'धर्म पूर्वक राज्य करों' इस प्रकार कह कर उसकी रक्षा में प्रवृत्त हुआ । इसके पश्चात् दो वर्ष तक लोगों में समीचीन 'धर्म की प्रवृत्ति रही। फिर क्रमशः काल के माहात्म्य से वह प्रतिदिन हीन होती चली गई। ___ इसी प्रकार पंचमकाल में एक १०००, एक १००० वर्ष बीतने पर एक कल्की तथा पांच सौ ५०० पांच सौ ५०० वर्ष बीतने पर एक-एक उपकल्की होता रहता है। प्रत्येक कल्की के प्रति एक एक दुःषमाकालवर्ती साधु को अवधिज्ञान प्राप्त होता है और उसके समय में चातुर्वर्ण्य संघ भी अल्प हो जाते हैं । . उस समय पूर्व में बांधे हुए पापों के उदय से चाण्डाल, शबर: श्वपत्र,
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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