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तत्पश्चात् सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु, लोहार्य ये चार प्राचार्य प्राचारोग के पूर्णवेत्ता तथा शेष ११ अंग १४ पूर्वो के एकदेश (अपूर्ण) वेत्ता (जानकार) पे । इन सबका समुदित काल ११८ वर्ष है । इस प्रकार ६२+ १००+१८३+ २२०+११५ - ६५३ वर्ष हुए। इसके १०८२ वर्ष पीछे इस 'शास्त्रसार समुच्चय' ग्रन्थ की रचना हुई।
धार्मिक प्रवृत्ति के कारण भूत भगवान महावीर का श्रुततीर्थ ( सिद्धांत ज्ञान) २०३१७ (बीस हजार तीन सौ सत्रह्)वर्ष तक चलता रहेगा फिर न्युच्छिन (लुप्त) हो जायगा । इस समय में मुनि, प्रायिका, श्रावक, श्राविका रूप चातुवर्ण्य संघ जन्म लेता रहेगा परन्तु जनता क्रोधी, अभिमानी, पापी, अविनीत, पुद्धि, भयातुर, ईर्ष्यासु होती जायनी ।
शक राजा पणछस्सय वस्सं पणमासजुदं गमिय वीररिणम्वुझ्दो।
सगराजो तो कक्की यदुवतियमहिम सगमास ।।८५०॥ त्रिलोकसार
अर्थ-भगवान महावीर के निर्वाण होने के पश्चात् ६०५ वर्ष ५ मास बीत जाने पर शक राजा हुआ । उस शक राजा से ३६४ वर्ष ७ मास पीछे कल्की राजा हुना।
अथवा तिलोयपण्णत्ती के मतानुसारधीरजिणे सिद्धिगदे चउसद इगिसद्वि बास परियाणे । कालम्मि अदिकते उप्यण्णो एत्थ सकरात्रो ।।१४६६॥
अर्थ-श्री वीर जिनेश्वर के मुक्त हो जाने पर ४६१ वर्ष पीछे शंक राजा हुआ
शक राजा की उत्पत्ति के समय के विषय में काष्ठासंघ, द्रविड़ संघ तथा श्वेताम्बरीय ग्रन्थकारों का विभिन्न मत है।
वीसुत्तरवाससदे विसनो वासारिण सोहिऊरण तदो। इगिवीस सहसहि भजिदे पाऊरण खयबड़ी ।।१५००॥ सकरिणवास जुदाणं चडसदइगिसठ्ठ वास पहुदीणं । घसजुददोसयहरिदे लद्धं सोहेज्ज विडणसट्ठी ॥१५०१॥
तिलोय पण्णत्ती। अर्थ-पंचम काल दुःषमा २१ हजार वर्ष का है। उसमें मनुष्यों को उत्कृष्ट प्रायु १२० वर्ष की तथा जघन्य प्रायु २० वर्ष की है । अत: उस्कृष्ट प्रायु १२० वर्ष में से जघन्य प्रायु २० वर्ष घटाकर २१ हजार में भाग