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________________ (४०) अर्थ-८४ लाख, ७२ लाख, ६० लाख, ५० लाख, ४० लाख, ३० लाख, १० लाख, वर्ष, ६५ हजार, ८४ हजार, ५५ हजार, ३० हजार, १० हजार, १ हजार, १०० और ७२ वर्ष की आयु क्रम से श्री ऋषभनाथ आदि तीर्थङ्करों की है। तदिये तुरिसे काले तिवास अडमास पक्खपरिसेसे । वसहां वीरो सिद्धो कक्किमरोछट्ट काल पारंो ।। यानी--तीसरे [सुषमा दुःषमा] में ३ वर्ष ८ मास १५ दिन शेष रहने पर श्री ऋषभनाथ मुक्त हुए । चौथे काल [दुःषमा सुषमा] में तीन वर्ष ८ मास १५ दिन शेष रहने पर भगवान महावीर मुक्त हुए। पंचम काल दुःषमा में ३ वर्ष ८ मास १५ दिन बाकी रहने पर प्रतिम कल्की का मरण होवेगा फिर छटा काल प्रारम्भ होगा। भगवान महावीर के पश्चात अंतिम तीर्थंकर श्री वीर प्रभु जिरा दिन मुक्त हुए उसी दिन श्री गौतम गणधर को केवल ज्ञान हुआ । जब गौतम गणधर सिद्ध हुए तत्र सुधर्मा गाधर को केवल ज्ञान हुा । जब सुधर्मा स्वामी मुक्त हुए तब धी जम्बूस्वामी को केवल ज्ञान हुआ । जम्बूस्वामी के मुक्त हो जाने पर अनुबद्ध ( क्रमसे, लगातार ) केवल ज्ञानी और कोई नहीं हुआ। गौतमादिक केवलियों के धर्म प्रवर्तन का काल पिण्ड रूप से ६२ वर्ष है ।। अननुबद्ध अंतिम केवली श्रीधर कुण्डलगिरि से मुक्त हुए हैं। चारण ऋद्धिधारक मुनियों में अंतिम ऋषि सुपावचन्द्र हुए हैं । प्रज्ञाश्रमणों में अंतिम वज्रयश और अवधिज्ञानियों में अंतिम ऋषि श्री नामक हुए हैं। मुकुटबद्ध राजाओं में जिन दीक्षा लेने वाला अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त मौर्य हुमा है । भगवान महावीर के मुक्त हो जाने पर श्री नंदी, नदिमित्र, अपराजित, । गोवर्द्धन तथा भद्रबाहु ये पांच द्वादशांग (११ अंग १४ पूर्वो के) वेत्ता श्रुत केवली हुए हैं । इनका समुदित काल १०० वर्ष है। भद्रबाहु आचार्य के बाद श्रुतकेवली कोई नहीं हुआ। श्री विशाख, प्रोष्ठित क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव और सुधर्म ये ११ मुनि ११ अंग, ६ पूर्वधारी हुए हैं । इनका समुदित समय १८३ वर्ष है। _तदनन्तर नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कैस ये ५ प्राचार्य म्यारह अंगधारक हुए । इनका समुदित काल २२० वर्ष है।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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