________________
(३६) वीरोनाथ कुलोदभूतः पार्श्वस्तूग्रवंशतः । हरिवंशाम्बराओं द्वौ नेमीशमुनिसुव्रतौ ॥ धर्म कुन्थ्वरतीर्थशाः कुरुवंशोद भवास्त्रयः ।
इक्ष्वाकु कुलसंभूताः शेषाः सप्तेतेशजिनाः ।। भगवान महावीर नाथ-बंश में उत्पन्न हुए। उग्र वंश में भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ। मुनिसुग्रतनाथ तथा नेमिनाथ हरिवंश रूपी आकाश में सूर्य के समान हुए । धर्मनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ तीर्थकर कुरुवंश में हुए । शेष १७ तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश में हुए।
वृषभस्य वासु पूज्यस्य नेमेः पर्यत्रबन्धतः ।
कायोत्सर्ग स्थिताना त् सिद्धिः शेष जिनेशिनाम् ।। अर्थ-भगवान ऋषभनाथ, वासु पूज्य और नेमिनाथ की मुक्ति पर्यतः श्रासन (पद्मासन) से हुई। शेष समस्त तोर्थंकरों को मुक्ति खड्गासन (खड़े आसन) से प्राप्त हुई।
__तीर्थकरों को अवगाहमा धण तण तंगो तित्थे पंचसयं पण्णदपणूणममं ।
अट्ठसु पंचसु अट्ठसु पासदुर्ग रणवयसत्तकरा ॥८०४॥ त्रिलोक सारअर्थ---श्री ऋषभनाथ आदि तीर्थङ्करों के शरीर को अवगाहना (ऊंचाई)। क्रम से ५००, ४५०, ४००, ३५०, २५७, २००, १५०, १००, ६०, ८० ७०, ६०, ५०, ४५, ४०, ३५, ३०, २५, २०, १५,१०, धनुष, ६ हाथ, ७ हाथ है।
प्रायु-प्रमाण तित्थाऊ चुलसीदी विहत्तरीसहि नरगसु दसहोणं । विगि पुटवलक्खयंत्तौ चुलसीदि निसत्तरी सट्ठी ।। १०५ ।। तीसदसएक्कलक्खा पणणवदी चदुरसीदिपवण्णं ।। तीसं दसिगिसहस्सं सयबावत्तरि सया कमसोः ॥८०६॥
त्रिलोक-सार रहिता इत्यर्थः । यानी-स्ती परिणयना और राज्य अभिषेक से रहित उक्त ५ तीर्थहर . थे।
इससे यह भी सिद्ध होता है भगवान मल्लिनाथ पुरुष थे अन्यथा उनके लिये 'पुरुष पाणिग्रहण रहिता' वाक्य का प्रयोग होता । अन्ध रवेताम्बरीय भागमःप्रन्थों में भी ५ तीर्थकर पाल अझचारी माने गये है।