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________________ (३८) कतिपय विशेष बातें . वीरमथ वर्द्धमान सन्मतिनाथ चहृति महावीरम् । हरिपितरर्थ संगम चारण धरिण कृताभि दानर्माभवन्दे ॥ अर्थ-शिशु समय में भी १००८ कलशों के जल का अभिषेक सहन कर लेने के कारण इन्द्र ने अन्तिम तीर्थंकर वा वीर नाम रम्ला । उत्पन्न होते ही माता-पिता का वैभव, पराक्रम बढ़ता गया इस कारण वीर प्रभु का दूसरा नाम 'वर्द्धमान' प्रसिद्ध हुअा । सञ्जय, विजय, नामक चारणऋद्धि धारी मुनियों का संशय बालक वीर प्रभु के दर्शन से ही दूर के ग स कारण उनका नाम 'सन्मति' प्रख्यात हुआ । भयानक सर्प से भयभीत न होने के कारण उनका नाम अतिबीर या महावीर प्रसिद्ध हुआ। श्यामी पार्श्व सुपाश्चों द्वौ नीलाभौ नेमिसुबतौ । चन्द्र दन्तौ सितौ शोणी पद्मपूज्यो पदे-पदे ।। अर्थ--सुपार्श्वनाथ तथा पार्श्वनाथ तीर्थकर हरित थे, मुनिसुव्रतनाथ और नेमिनाथ नीलवर्ण थे । चन्द्रप्रभु और पुष्पदन्त का शरीर सफेद था। पद्मप्रभु और वासुपूज्य का रंग लाल था । शेषा षोडश हेमाभा कुमारा: पञ्च दीक्षका । वासु पूज्यजिनो मल्लिनमिः पाश्वोऽथ सन्मतिः ॥ शेष १६ तीर्थकरों के शरीर का वर्ण सुवर्ण का सा था। वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ पार्श्वनाथ और महाबीर ये पांच तीर्थकर बाल ब्रह्मचारी थे कुमार अवस्था में ही इन्होंने मुनि दीक्षा ली थी। (१) (१) श्वेताम्बरीय प्रन्थों में भी पाँच तीर्थङ्कर बाल ब्रह्मचारी माने हये हैं। आवश्यकनियुक्ति में लिखा है-- वीर अरिङ्कनेमि पास मल्लिच वास पुज्जच । पए मुतूण जिरी अवसमा आसि राजाणो ॥ २२१ ॥ रायकुलेसुधि जाता विसुद्भधसेसु खत्तिय कुलेसु । ण्यथि काभिसेया कुमार कालम्मि पबद्या ।। २२२ ॥ अर्थ--महावीर, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, मल्लिनाथ और वासुपूज्य ये पांच तीर्थङ्कर विशुद्ध क्षत्रिय राजकुल में उत्पन्न हुन और कुमार अवस्था में ही मुनि दीक्षित हुए । इन्होंने न तो विवाह किया, न इनका राज्य-अभिषेक हुआ। शेष सभी तीर्थंकरों का विवाह तथा राज्य अभिषेक हुश्रा पीछे उन्होंने प्रवृज्या, अर्थात मुनि दीक्षा ली। __'या य इस्थि आभिसया' का अर्थ टिप्पणी में लिखा है 'स्त्री पाणिग्रहण इत्यादि
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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