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________________ (३७) संन्यासी बन गया और उसने मिथ्यामत चलाया। कठोर तप करने से ची स्वर्ग का देव हुआ । फिर उसने क्रम से 'जटिल' नामक ब्राह्मण, सौधर्म स्वः का देव, अग्निसहामित्र, सनत्कुमार स्वर्ग का देव, कौशिक, महेन्द्र स्वर्ग का देव भारद्वाज ब्राह्मण हुआ फिर महेन्द्र स्वर्ग का देव हया । तदनन्तर बस स्थाव जीवों में जन्म-मरण करता हुआ वही पुरूरवा भील का जीव संसार में भ्रमर करता रहा । फिर शुभ कर्म के उदय से बेदपाठी ब्राह्मण हुआ । फिर क्रम' महेन्द्र स्वर्ग का देव, विश्वनन्दि राजा, महाशुक्र का देव, श्रिपृष्ट नारायण होक सातवें नरक गया । वहां से निकल कर सिंह हुया । सिंह की पर्याय में उसे अरिष्जय नामक मुनि से उपदेश प्राप्त हुआ वहां समाधि-मरण करके सिंहवज देव हुआ। फिर ऋम से कनकध्वज विद्याध कापिष्ठ स्वर्ग का देव, हरिषेण राजा, महाशुक्र का देव, प्रियमित्र राजा, सहस्त्रा स्वर्ग का देव हुया । देव पर्याय समाप्त करके नन्दन नाम का राजा हुआ । उर भव में उसने दर्शनविशुद्धि प्रादि सोलह कारण भावनाओं का पाराधन किय जिनसे तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध किया । फिर समाधि-मरण करके सोलह स्वर्ग का इन्द्र हुआ। तदनन्तर देव प्रायु समाप्त करके कुण्डलपुर के ज्ञातवंशीय राजा सिद्धाय की रानी त्रिशला (वैशाली के गणतंत्र शासक राजा चेटक की पुत्री) की कोख से चौबीसवें तीर्थंकर 'वर्द्धमान' के रूप में जन्म लिया । यह समय भगवान पार्श्वनाथ से २५० वर्ष पीछे का था। भगवान बर्द्धमान के वीर, महावीर सन्मति, अतिवीर ये चार नाम प्रसिद्ध हुए। इनकी आयु ७२ वर्ष की थी। हाथ ऊंचा शरीर था, सोने का-सा रंग था । पैर में सिंह का चिन्ह था । यौवन अवस्था आने पर कलिंग के राजा जितशत्रु की सर्वाङ्ग सुन्दरी कन्या यशोदा में साथ विवाह करने की तैयारी जब राजा सिद्धार्थं करने लगे, तो भगवान् महावीन ने विवाह करना स्वीकार न किया, बाल-ब्रह्मचारी रहे । ३० वर्ष की आयु में महानती दीक्षा ली 1 १२ वर्ष तक तपश्चरण करने के बाद आप को केवल ज्ञान हुआ । फिर ३० वर्ष तक सब देशों में विहार करके अहिंसा धर्म का प्रचार किया जिससे पशु यज़ होने बन्द हो गये । आपके इन्द्रभूति गौतम, वायुभूति, अग्नि भूति, सुधर्मा, मौर्य, मंडिपुत्र, मैत्रेय, अकम्य, अानन्द, अचल और प्रभाव ये ११ गणधर थे, चन्दना आदि आयिकाएं थीं। मातंग यक्ष और सिद्धायनी यक्षिणी पी । सिंह का चिन्ह था । अन्त में आपने पावापुरी से मुक्ति प्राप्त की। आपके . समय में सात्यकि नामक ११वां रुद्र हुमा ॥ २४ ॥ - --- - ---
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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