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________________ उस सर्प ने पूर्व भव का वैर विचारकर उस हाथी की सूड़ में काट लिया हाथी में शान्ति, से शरीर त्याग कर सहस्रार स्वर्ग में देव पर्याय पाई । सर्प मरकर पांचवें नरक में गया मरुभूति का जीव १६ सागर स्वर्ग में रहकर विदेह क्षेत्र में विद्याधर राजा का पुत्र रश्मिदेग हुअा । कमठ का जीव नरक से निकल कर विदेह क्षेत्र में अजगर हुआ । रश्मि वेग ने नौवन अवस्था में मुनि दीक्षा लेली । संयोग से कमठ का जीब अजगर उन ध्यानमग्न मुनि के पास आया तो पूर्वभव' का वर विचार कर उनको खा गया। रश्मिवेग मुनि मर कर सोलहवे स्वर्ग में देव हुए। कमठ का जीव अजगर मर कर छते नरक में गया। मरुभूति का जीव स्वर्ग की आयु समाप्त करके विदेह क्षेत्र में राजा वज्रवीर्य का पुत्र बचनाभि हा बज्रनाभि ने चक्र रत्न से दिविजय कर के चक्रवर्ती सम्राट का पद पाया । बहुत समय तक राज्य करने के बाद वह फिर संसार से विरक्त होकर मुनि बन गया कमठ का जीव नरक से निकल कर इसी विदेह क्षेत्र में भील हुआ । एक दिन उसने ध्यान में मग्न बज्रनाभि मुनि को देखा तो पूर्व भव का वर विचार कर उनको मार डाला । मुनि मरकर मध्यम ग्रंबेयक के देव हुए । कमठ का जीव . भील मर कर नरक में गया। मरुभूति का जीव अहमिन्द्र की आयु समाप्त करके अयोध्या के राजा बज्रबाहु का प्रानन्द नामक पुत्र हुया । आनन्द ने राज पद पाकर बहुत दिन तक राज्य किया। फिर अपने सिर वा सफेद बाल देख कर मुनि दीक्षा लेली । मुनि दशा में अच्छी तपस्या की और तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । कमठ का जीव नरक से आकर सिंह हुआ था । उसने इस भव में पूर्व वैर विचार कर आनन्द मुनि का भक्षण किया । मुनि संन्यास से शरीर त्याग कर प्राणत स्वर्ग के इन्द्र हुए । सिंह मरकर शम्बर नामक असुर देव हुआ। , मरुभूति के जीव ने प्रागत स्वर्ग की प्राय समाप्त करके बनारस के इक्ष्वाकुवंशी राजा अश्वसेन की रानी ब्राह्मी ( वामादेवी ) के उदर से २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के रूप में जन्म लिया। भगवान नेमिनाथ के ८३ हजार सात सौ पचास वर्ष बीत जाने पर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था । भगवान पारवनाथ की आयु १०० वर्ष की थी। उनका शरीर हरित रंग का था। नौ हाथ की ऊंचाई थी, पैर में सर्प का चिन्ह था । जब वे १६ वर्ष के हुए तब हाथी पर सवार होकर गंगा के किनारे सैर कर रहे थे । उस समय उन्होंने एक तापसी को अग्नि जलाकर तपस्या करते हुये देखा । भगवान पार्श्वनाथ को अवधि ज्ञान से ज्ञात हुआ कि एक जलती हुई लकड़ी के भीतर सर्प सर्पिणी भी जल रहे हैं । उन्होंने तापसी से यह बात कही ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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