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हजार वर्ष की आयु थी और शरीर की ऊंचाई दश धनुष थी, उनके पैर में शंख का चिन्ह था । वे भगवान नमिनाथ के मुक्त होने के चार लाख ९६ हजार वर्ष पीछे उत्पन्न हुए थे। युवा हो जाने पर उनका विवाह सम्बन्ध जूनागढ़ के राजा उग्रसेन (ये कंस के पिता उग्रसेन से भिन्न थे) की गुगावती युवती परमसुन्दरी सुपुत्री राजमती के साथ निश्चित हुया । बड़ी धूमधाम से अापकी बरात जूनागढ़ पहुंची। वहां पर कृष्ण ने भावान नेमिनाथ को वैराग्य उत्पन्न कराने , के अभिप्राय से बहुत से पशु एक बाड़े में एकत्र करा दिये थे। ये पगु करुणचीत्कार कर रहे थे । भगवान नेमिनाथ को अपने रश्रवाहक से ज्ञात हुया कि इन पशुओं को मार कर मेरी बरात में आये हाए कुछ, मांसभक्षी लोगों की लोलुपता पूर्ण की जायगी । यह बात विचार कर उनको तत्काल वैराग्य हो गया और वे तोरण द्वार से लौट गये। उन्होंने जूनागढ़ के समीपवर्ती गिरनार पर्वत पर संयम धारण कर लिया । राजमती भी आयिका हो गई। ५६ दिन तपश्चर्या करने के बाद भगवान नेमिनाथ को केवल ज्ञान हो गया । तदन्तर सर्वत्र विहार करके धर्म प्रचार करते रहे। उनके संघ में वरदत्त आदि ११ गरगधर, १८ हजार सब तरह के मुनि और राजमती आदि ४० हजार आर्यिकायें थीं । सर्वाहिक यक्ष आम्रकुस्मांडिनी यक्षी व शस्त्र का चिह्न था। वे अन्त में गिरनार से
उनके समय में उनके चचेरे भाई हवें बलभद्र बलदेव तथा नारायण कृष्ण और प्रतिनारायण जरासन्ध हुए हैं ॥ २२ ।।
भगवान् पार्श्वनाथ इसी भरत क्षेत्र में पोदनपुर के शासक राजा अरविन्द थे। उनकर सदाचारी विद्वान् मंत्री मरुभूति था। उसकी स्त्री वसुन्धरी बड़ी सुन्दर थी। मरूभूति का बड़ा भाई कमठ बहुत दुराचारी था। वह वसुन्धरी पर आसक्त था। एक दिन मरुभूति पोदनपुर से बाहर गया हुया था। उस समय प्रपंच बनाकर कमठ ने मरुभूति की स्त्री का शीलभंग कर दिया। राजा अरविन्द को जब कमठ का दुराचार मालूम हुआ तो उन्होंने कमठ का मुख काला करके गधे पर बिठाकर राज्य से बाहर निकाल दिया। कमठ एक तपस्वियों के आश्रम में चला गया वहाँ एक पत्थर को दोनो हाथों से उठाकर खड़े होकर वह तप करने लगा । मरुभूति प्रेमवश उससे मिलने आया तो कमठ ने उसके ऊपर वह पत्थर पटक दिया। जिससे कुचल कर मरुभूति मर गया।
मरुभूति मर वार दूसरे भव में हाथी हुआ और कमठ मर कर सर्प हुआ।