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उसको वैराग्य हो गया । वह मुनि दीक्षा लेकर तपस्या करने लगा । दर्शनविशुद्धि श्रादि १६ भावनाओं द्वारा उसने तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया । आयु के अन्त में समाधिमरत किया और अपराजित नामक प्रनुत्तर विमान में अहमिन्द्र उत्पन्न हुआ। वहाँ उसने ३३ सागर की आयु व्यतीत की। तदनन्तर मिथिला नगरी में इक्ष्वाकुवंशी काश्यप गोत्रीय महाराजा विजय की महारानी वप्पिला के उदर से २१वें तीर्थंकर श्री नमिनाथ के रूप में जन्म लिया । भगवान् मुनिसुव्रतनाथ के बाद ६० लाख वर्ष तीर्थकाल बीत जाने पर भगवान् नमिनाथ का जन्म हुआ था। उनकी श्रायु दस हजार वर्ष थी, शरीर १५ धनुष ऊंचा था, वर्ण सुवर्ण के समान था, चिन्ह नीलकमल का था ! भगवान् नमिनाथ का ढाई हजार वर्ष समय कुमार काल में और ढाई हजार वर्ष राज्य शासन में व्यतीत हुश्रा, तदनन्तर पूर्व भवका स्मरण भाकर उन्हें वैराग्य हो गया तब मुनि दीक्षा लेकर वर्ष तक तपस्या की तदनन्तर उनको € केवल ज्ञान हुआ । उस समय देश देशान्तरों में विहार करके धर्म प्रचार करते रहे। उनके संघ में सुप्रभार्य आदि १७ गरधर, २० हजार सब तरह के मुनि श्री मङ्गिनी यादि ४५ हजार अर्यिकाएं थीं । भ्रकुटि यक्ष चामुंडी यक्षी, नीलोत्पल चिन्ह था अन्त में भगवान् नमिनाथ ने सम्मेद शिखर से मुक्ति प्राप्त की ।। २१ ।
भगवान नेमिनाथ
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जम्बू द्वीपवर्ती पश्चिम विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर सुगन्धिला देश है । उसमें सिंहपुर नगर का यशस्वी, प्रतापी और सौभाग्यशाली राजा अपराजित शासन करता था उसको एक दिन पूर्वभव के मित्र दो विद्याधर मुनियों ने श्राकर प्रबुद्ध किया कि अब तेरी श्रायु केवल एक मास रह गई हैं, कुछ आत्म-कल्याण करले । अपराजित अपनी आयु निकट जानकर मुनि होगया। मुनि होकर उसने खूब तपश्चर्या की श्रायु के अन्त में समाधिमरण कर सोलहवें स्वर्ग का इन्द्र हुआ । वहाँ से च्युत होकर हस्तिनापुर के राजा श्रीचन्द्र का पुत्र सुप्रतिष्ठ हुा । राज्य करते हुए सुप्रतिष्ठ ने एक दिन बिजली गिरती हुई देखी, इससे संसार को क्षणभंगुर जानकर मुनि हो गया । मुनि अवस्था में उसने तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया और आयु के अन्त में एक सास का संन्यास धारण करके जयन्त नामक ग्रनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुआ। वहाँ पर तैंतीस सागर की आयु बिताकर द्वारावती के यदुवंशी राजा समुद्रविजय की रानी शिवादेवी की कोख से रखें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ के रूप में उत्पन्न हुआ ।
भगवान नेमिनाथ का शरीर नील कमल के समान नीले वर्णं का था, एक