SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३०) वर्ष की थी, ३५ धनुष ऊंचा शरीर सुवर्ण वर्ण था 1 बकरे का चिन्ह पैर में था। भगवान कुन्थुनाथ ने २३७५० वर्ष कुमार अवस्था में बिताए फिर इतने समय तक ही राज्य किया तदनन्तर दिग्विजय करने निकले और छ: खंड जीतकर भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती सम्राट बने । बहुत समय तक चक्रवर्ती सम्राट बने रहकर पूर्व भव के स्मरण से इनको बैगम्य हुया । १६ वर्ष तपस्या करके अर्हन्त पद प्राप्त किया। तब समवदारगा में अपनी विध्यध्वनि से मुक्ति मार्ग का प्रचार किया। आपके स्वयम्भू आदि ३५ गणधर थे, ६० हजार सब तरह को मुनि थे, भाविता आदि ६० हजार ३०० अयिकायें थीं। गंधर्व यक्ष, जया यक्षी थी । अन्त में आपने सम्मेद शिखर से मोक्ष प्राप्त की ।१७। अरनाथ जम्बूद्वीप में बहने वाली सीता नदी के उत्तरी तट पर कच्छ नामक एक देश है उसका शासन राजा बनपति करता था । उसने एक दिन तीर्थकर के समवशरण में उनकी दिव्य वाणी सुनी । दिव्य उपदेश सुनते ही वह संसार से विरक्त होकर मुनि हो गया। तब उसने अच्छी तपस्या की और सोलह भावनाओं का चिन्तवन करके तीर्थङ्कर पद का उपार्जन किया । आयु के अन्त में समाधिमरण करके जयन्त विमान में अहमिन्द्र हुप्रा । तेतीस सागर अहमिन्द्र पद के सुख भोग कर उमने हस्तिनापुर के सोमवंशी राजा सुदर्शन की महिमाभयो रानी मित्रसेना के गर्भ में प्राकर श्री अरनाथ तीर्थङ्कर के रूप में जन्म ग्रहण किया। भगवान अरनाथ के शरीर का वर्ण सुवर्ण समान था । जब एक हजार करोड़ चौरासी हजार वर्ष कम पल्य का चौथाई भाग समय भगवान कुन्थुनाथ को मोक्ष होने के बाद से बीत चुका था तब श्री अरनाथ का जन्म हुग्रा था । उनका शरीर ३० धनुष ऊंचा था, पैर में मछली का चिन्ह था । उनकी आयु चौरासी हजार वर्ष की थी । २१ हजार वर्ष कुमार अवस्था में व्यतीत हए। २१ हजार वर्ष तक मंडलेश्वर राजा रहे फिर ६ खंडों की विजय करके २१ हजार वर्ष तक चक्रवर्ती पद में शासन किया। तदनन्तर पारद कालीन बादलों को विघटता देखकर वैराग्य हुअा । अतः राज्य त्याग कर मुनि हो गये । १६ वर्ष तक तपश्चरण करते हुए जब बीत गये तब उनको केवल ज्ञान हुना। फिर समवशरण में विराजमान होकर भव्य जनता को मुक्त पथ का उपदेश दिया । इनके कुम्भार्य शादि तीग गग्गधर तथा सब प्रकार के ६० हजार मुनि और यक्षि यानि एक हजा' आर्यिका भगवान के संघ में थीं। महेन्द्र
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy