________________
( २६ } नानों का चिन्तवन किया जिससे उसने तीर्थकर प्रकृति का उपार्जन किया । आयु के अन्तिम समय प्रायोपगमन संयास धारण कर अनुत्तर विमान में अहमिद्र हुअा।
वहां पर ३३ सागर की सुखमयी प्रायु समाप्त करके हस्तिनापुर में राजा विश्वसेन की रानी ऐरादेवी के उदर से सोलहवें तीर्थङ्कर शांतिनाथ के रूप में जन्म धारण किया । भगवान धर्मनाथ से एक लाख वर्ष तथा पौन पल्य कम तीन सागर का समय बीत जाने पर भगवान शान्तिनाथ का जन्म हुआ था। उनकी आयु एक लाख वर्ष की थी, शरीर सुवर्ण के से रंग का था, पैर में हिरण का चिन्ह था और शरीर को ऊंचाई ४० धनुष थी।
पच्चीस हजार वर्ष का कुमार काल बीत जाने पर उनके पिता ने भगवान शान्तिनाथ का राज्य अभिषेक किया। २५ हजार वर्ष राज्य कर लेने के बाद वे दिग्विजय करने निकले । दिग्विजय करके भरत क्षेत्र के पांचवें चक्रवर्ती सम्राट बन गये । २५ हजार वर्ष तक चक्रवर्ती साम्राज्य का सुख भोग करते हए एक दिन उन्होंने दर्षण में अपने शरीर के दो साकार देखे, इससे उनकी रुचि संसार की ओर से हट गई और राज्य त्याग कर महाव्रती साघु हो गये । सोलह वर्ष तक तपश्चरग करने के पश्चात् उनको केवल ज्ञान हुमा । तब समवशरण द्वाग महान धर्म प्रचार किया । चक्रायुध आदि उनके ३२ गरणधर थे। ६२ हजार अनेक प्रकार की ऋद्धियों के धारक मुनि तथा हरिषेण आदि साठ हजार तीन सौ अर्यिकायें उनके संघ में थीं अन्त में सम्मेद शिखर से सर्व कर्म नष्ट करके मुक्त हुए । इनका गरुड यक्ष और महामानसी यक्षी थी ।१६।
कुन्थुनाथ जम्बूद्वीपवर्ती पूर्व विदेह क्षेत्र में वत्स, नामक एक देश है । उस देश के सुसीमा नगर में एक महान बलवान सिंहथ नाम का राजा राज्य करता पा एक दिन उसने अाकाश से गिरती हुई बिजली देखी, इससे उसको वैराग्य हो गया । विरक्त होकर उसने साधु अवस्था में १६ कारण भावनामों का चिन्तवन किया जिससे तीर्थङ्कर प्रकृति का बंध किया । अन्त में वीर मरण करके सर्वार्थ सिद्ध का देव हुना।
वहां ३३ मागर की आयु बितारक हस्तिनापुर में महाराजा शूरसेन की महारानी श्रीकान्मा के उदरसे १७वें तीर्थकर कुन्भुनाथ नामक तेजस्वी पुत्र हुम्मा । भगवान शान्तिनाथ के मोक्षगमन से ९५ हजार वर्ष कम प्राधा पल्य समय बीत जाने पर भगवान कुन्थुनाष का जन्म हुआ था इनकी प्राशु ६५ हजार