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धर्मनाथ धातकी खण्ड के वत्स देश में सुसीमा महानगर का स्वामी राजा दशरथ बहुत पराक्रम के साथ राज्य करता था। एक दिन वैशास्त्र सुदी पूरणेमाणी को चन्द्रग्रहण देखकर संसार की अस्थिरता का उसे बोध हुआ, अतः अपने पुत्र महारथ को राज्य भार सौंप कर पाप महाव्रती साधु बन गया। संयम धारण कर लेने पर १६ कारण भावनाओं का चिन्तवन करके तीर्थंकर प्रकृति बांधी । समाधि के साथ वीर मरण करके वह सवार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ। वहां ३३ सागर का दीर्घ काल बिता कर रत्नपुर के शासक राजा भानु को रानी सुप्रभा के गर्भ में पाया । ह मास पीछे १५ वें तीर्थंकर धर्मनाथ के रूप में जन्म लिया । भगवान अनन्तनाथ के मुक्त होने से १० लाख वर्ष कम चार सागर का समय अब तक बीत चुका था।
भगवान धर्मनाथ की आयु १० लाख वर्ष थी। शरीर ४५ धनुष कंचा था। शरीर का वर्ण सुवर्ण-जैसा था, पैर में बज्रदण्ड का चिन्ह था । यौवनकाल में बहत समय तक राजसुख भोगा । एक दिन उल्कापात (बिजली गिरना) देखकर उन्हें वैराग्य हो गया, अतः राज सम्पदा छोड़ कर साधु-दीक्षा स्वीकार की। उसी समय उन्हें मनःपर्यय ज्ञान प्रकट हो गया। तदनन्तर एक वर्ष पीछे उन्हें केवलज्ञान हो गया । तब समवशरण द्वारा अनेक देशों में महान धर्म प्रचार किया। आपके अरिष्टसेन आदि ४७ गणधर थे और सुव्रता प्रादि ६२४०० अयिकायें, हजारों विविध ऋद्धिधारी साधु थे। किन्नर यक्ष, परभृती यक्षिणी थी। अन्त में पाप सम्मेद शिखर पर्वत से मुक्त हुए।
__इनके समय में पांचवें बलभद्र सुदर्शन तथा पुरुषसिंह नामक नारायण और निशुम्भ नामक प्रतिनारायण हुए हैं। इन ही धर्मनाथ तीर्थंकर के तोर्थ काल में तीसरे चक्रवर्ती मघवा हुए हैं।१५॥
शान्तिनाथ इस जम्बूद्वीपवर्ती विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देश है उस देश में पुण्डरीकिणी नामका एक सुन्दर निशाल नगर है । वहां पर घनरथ नामक राजा राज्य करता था। उसके वेयक से च्युत होकर मेघराज नामक पुत्र हुआ वह बड़ा प्रभावशाली, पराक्रमी, दानो, सौभाग्यशाली और गुरगी था 1 उसने अपने पिता से प्राप्त राज्य का शासन बहुत दिन तक किया । उसने जब तीर्थकर का उपदेश सुना तो उसको भात्मसाधना के लिये उस्साह हुना, इस कारण घर बार राजपाट छोड़कर मुनि बन गया। मुनि अवस्था में उसने पोशकारण भाव