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________________ (२ ) प्रातिहार्य सहित अनन्तनाथ भगवान को प्रतिमा सुन्दर मंडप में विराजमान करे उसका अभिषेक करे। तथा 'ॐ नमःअहते भगवते त्रैलोक्यनाथाय परीक्षण रोषकल्मषाय दिव्यतेजोमूर्तये अनन्त तीर्थंकराय अनन्त सुखप्रदाय नमः ।' इस मन्त्र को पढ़कर अष्ट द्रव्य से भगवान का पूजन करे । चौदह प्रकार के धान्यों के पुञ्ज रखकर चौदह प्रकार के पुष्पों और चौदह प्रकार के फलों से पूजा करे । चौदह प्रकार के सूत से बना हुआ चौदह गांठों वाले जनेऊ (यज्ञोपवीत) को चन्दन केसर कपूर मिलाकर रंगे और उस यज्ञोपवीत को 'ॐ नमः अहंते भगवते त्रैलोक्यनाथाय अनन्तज्ञान दर्शनवीर्य सुखात्मकाय स्वाहा' मंत्र के द्वारा पूजा करे । चौदह जल धारा, चौदह तिलक, चौदह मुट्ठी चावल, चौदह पुष्य, चौदह सुपारी, धूप, १४ पान द्वारा पूजन करे तथा "ॐ ह्रीं अनन्ततीर्थकराय उ० ह्रां ह्रीं ह्र: ह्रीं ह्र: असिग्राउसा मम सर्वशान्ति क्रांति तुष्टि पुष्टि सौभाग्य मायुरारोग्यमिष्ट सिद्धि कुरु कुरु सर्वविध्न परिहरं कुरु कुरु नमः वषट स्वाहा” मंत्र पढ़कर अर्घ चढ़ाना चाहिए। तत्पश्चात् ॐ ऐं द्रीं द्वा क्लीं अर्ह मम सर्वशान्ति कुरु कुरु वषट् स्वाहा ।" मन्त्र पढ़कर जनेऊ गले में पहन लेना चाहिए तथा राखी अपने हाथ में या कान में बांध लेनी चाहिये । 'ऊँ. ह्रीं अहं नमः सर्व कर्म बन्धन विनिर्मुताय अनन्ततीर्थक गय अनन्त सुखप्रदाय स्वाहा' मंत्र पढ़कर पुराना जनेऊ उतार देना चाहिए। तदनन्तर देव शास्त्र गुरु की पूजन करे चौदह सौभाग्यवती स्त्रियों को चौदह प्रकार के फल भेंट करे रात्रि जागरण करे। दूसरे दिन नित्यनियम क्रिया करके पारणा करे । इस प्रकार १४ वर्ष तक करके उद्यापन करे । उद्यापन में यथा शक्ति अन्न वस्त्र प्रादि का दान करना चाहिए । चौदह दम्पत्तियों (पति पतनियों) को घर में भोजन कराना चाहिये, वे गरीब हों तो उन्हें वस्त्र भी देने चाहिये । १४ शास्त्रों की पूजा करके मंदिर में देना चाहिए, चौदह प्रा. चार्यों की पूजा करना चाहिए, १४ प्रायिकानों को वस्त्र देना चाहिये। मंदिर में चौदह प्रकार की सामग्री भेंट करनी चाहिये । चार प्रकार के संघ को आहार देना चाहिये । चौदह मुठ्ठी चावल भगवान के समाने चढ़ाने चाहिये। ___इस प्रकार अन्नत चतुर्दशी व्रत के करने तथा उद्यापन करने की विधि है। भगवान अनन्तनाथ के समय में चौथे बलभद्र (नारायण के बड़े भाई) मुप्रभ और पुरुषोत्तम नारायण तवा मधुमुदन नामक प्रतिनारायण हुए ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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