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________________ (२६) भगवान विमलनाथ ने यौवन अवस्था में बहुत दिन तक राज्य किया फिर संसार से विरक्त होकर मुनिग्रत धारण किया । तीन वर्ष तक तपस्या करने वे अनंतर उन्हें केवल ज्ञान हुआ तब समवशरण द्वारा सर्वत्र धर्म प्रचार किया उनके मन्दर प्रादि ५५ गणधर थे और पद्मा आदि एक लाख ३ हजा प्रायिकायें थीं। वैगेटनी यक्षिणी, सन्मुख यक्ष था। भगवान विमलनाथ के समय में धर्म नामक बलभद्र और स्वयम्भू नामव तीसरा नारायण तथा मधु नामक प्रतिनारायण हुआ है ।१३। अनन्तनाथ (अनन्तजित) धातकी खंड में अरिष्ट नगर के स्वामी राजा पद्मरथ बड़े सुख रे राज्य कर रहे थे। एक बार उनको भगवान स्वयंप्रभु के दर्शन करने का अवस मिला। भगवान का दर्शन करते ही उनका मन संसार से विरक्त है गया, अतः वे अपने पुत्र धनरथ को राज्य भार देकर मुनि बन गये । बहुत कार तक तप करते रहे । १६ भावनाओं के कारण तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया अन्त में समाधि-मरण करके सोजद स्वर्ग हद विमा : स्वर्ग बाईस सागर की प्रायु समाप्त करके अयोध्या के अधिपति महाराज सिंहसेन के .महारानी जयश्यामा के उदर से जन्म लिया । आपका नाम अनन्तजित या अनन्तनाथ रक्खा गया। भगवान विमल नाथ को मुक्ति के समय से अब तक ६ सागर तथा पौन पल्य समय बीत चुक था पाप की आयु के बीस लाख वर्ष भी इसमें सम्मिलित हैं। आपका शरी सूवर्ण वर्ण था। ऊंचाई ५० धनुष थी। पर में सेहो का चिन्ह था । प्रापन यौवन काल में आपका राज्याभिषेक हुआ। बहुत समय तक निष्कंटक राप किया । एक दिन आकाश से बिजली गिरते देखकर आप को वैराग्य हो गय अत: सिद्धों को नमस्कार करके आप मुनि बन गये। तत्काल पाप को मनःपर्य ज्ञान हो गया और दो वर्ष तपश्चरण करने के अनन्तर पाप को विश्व शायकेवलज्ञान हुमा । अापके जय प्रादि ५० गणधर हुए सर्वश्री आदि एक लाम ८ हजार प्रायिकायें थीं, पाताल यक्ष अनन्तमति यक्षिणी थी। समवशर द्वारा समस्त देशों में धर्म प्रचार करके आयु के अन्त में सम्मेद शिखर पर्व से मुक्त हुए ।१४। अनन्त चतुर्दशी व्रत अचिन्त्य फल दायक अनन्त चतुर्दशी व्रत की विधि निम्नलिखित है. भाद्रपद सुदी चतुर्दशी को उपवास करे तथा एकान्त स्थान में अप
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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