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________________ होती है । क्षीण कषाय गुणस्थान में ५ शानावरण, दर्शनावरण को ४ (चक्षु पक्ष आदि), निद्रा, प्रचला, अन्तराय की ५ इस तरह कुल १६ प्रकृतियों की सत्वन्युच्छित्ति होती है। " वहादीफ़स्संता थिरसुहसरसुरविहायगसुभगं । . गिमिणाजसऽरणादेज्ज पत्तेयापुण्ण अगुरुचऊ । अणुदयतदियं णीचमजोगिदुचरिमम्मि सत्तवोच्छिण्णा। . उदयगवा राराणु सेरम चरिमन्हि. वोच्छिण्णा ! अर्थ--(तेरहवें गुणस्थान में किसी भी प्रकृति की सत्वव्युच्छित्ति नहीं है) प्रयोग केवली गुण स्थान में औदारिक शरीर आदि स्पर्श तक को ५० प्रक्तिया, स्थिर अस्थिर, शुभ अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर. देव गति देवगत्यानुपूर्वी प्रशस्त, भप्रशस्त विहायोगति, दुर्भाग, निर्माण, अयशस्कीर्ति, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, प्रमुरुलघु मादि ४, साता पा असाता वेदनीय, नीचगोत्र ये ७२ प्रफतियां अंत के प्रथम समय में सरवट्युच्छित्ति होती हैं । अन्तिम समय में इसी गुए स्थान की उदयरूप १२ प्रकृतियां भौर मनुष्यगत्यानुपूर्वी ये १३ प्रकृतियां सत्ता से व्युसिछन्न होती हैं। सत्व असस्व प्रकृतियां-- . . . . णमतिगिणभइगि दोद्दो दसदस सोलट्ठगादिहीणेस। सत्ता हकति एवं असहाय परक्कमुद्दिछे ।। पर्थ-मिथ्यात्व गुणस्थान से अपूर्वकरण तक के पाठ गुणस्थानों में कम से ., ३, १, 0, १, २, २, १०, प्रकृतियों का प्रसत्व है। नौवें गुण स्थान के पहले भाग में १०, दूसरे में १६, तीसरे प्रादि भाग ८ प्रकृतियों का मसत्व है । असख प्रकृतियों को १४८ प्रकृतियों में से घटा देने पर शेष प्रकृतिमा अपने अपने गुणस्थान में सत्वरूप हैं। , यामी सय तिगेग सम्णे चेगं छसु दोषिण चउस छदसय दुगे। अस्सगदाल दोस तिसट्ठी परिहोण पडिसतं जाणे ।। .. पर्थ-मिथ्यात्व गुणस्थान में १४८ प्रकृतियों की सत्ता है, दूसरे में ३ कम, तीसरे में १ कम, पौधे में सब, पांचवें में १ कम, प्रमत्त, अप्रमत्त में २ कम, उपएी को अपेक्षा पूर्वकरण प्रादि गुणस्थानों में ६ कम, क्षपक श्रेणी को अपेक्षा अपूर्व करण प्रादि दो गुणस्थानों में १० कम, सूक्ष्म साम्पराय में ४६ कम, सयोम केवली प्रयोग केवली में ६३ प्रकृतियां कम का सत्व है.। .. .
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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