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________________ ( L) तीसं बारस उदयुच्छवं केवलि मेकदं किम्चा । सानमसनं च तहि मणुवाउगमवरिण किच्चा ॥१॥ प्रवरिणतिप्पयडीरण पमत्त विरदे उदीरमा होदि । एस्थिति नजोगिजिण उदीरखा उदय पयडीए ।।८२॥ अर्थ-कर्म प्रकृतियों की उदीरणा प्रमत्त सयोग केवली प्रयोग केवली इन तीन गुणस्थानों के सिवाय शेष समस्त गुणस्थानों में उदय के ही समान है। सयोग के ३० और प्रयोग केवली के १२ प्रकृतियों की [कुल ४२ की] उदयध्युच्छित्ति होती है। परन्तु इनमें से साता असाता वेदनीय और मनुष्य प्रायु की उदीरणावहां नहीं होती है इसकारण सयोग केवली के ३६ प्रकृतियों की उदोरणा होती है। साता, असाता, मनुष्य प्रायु को उदोरणा ( समय से पहले उदय पाना) छठे गुणस्थान में होती है । प्रयोग केवली के उदीरणा नहीं लोती । उदीरण अनियन्ति... पण एवइगि ससरस अट्ठट्ठ य चदुर छक्क छच्चेव । इगिद्गु सोलुगवलं उनोरणा होति जोगंता॥३॥ अर्थ-मिथ्यात्व प्रादि १३ गुणस्थानों में कम से ५६ ११७८ ४६६२२१६ ३६ प्रकृतियों की उदीरणा व्युच्छित्ति होती है। उदोरणा अनुदौरणासत्तर सेक्कारख चदुसहियसयं सगिगिसोदि तियसवरी । रणवतिसिछि सगछक्कवण चउवम्णमुगुवालं ॥४॥ पंचेक्कारसवावीसट्ठारस पंचतीस इगिरणवदालं। तेवोक्कुरणसट्टो पणछक्कडसट्ठि तेसोदो ॥८॥ पानी-पहले से १३वें गुणस्थान तक में क्रम से ११७, १११, १००, १०७, ७, ८१, ७३ ६६ ६३ ५७ ५६ ५४ १६ प्रकृतियों की उदीरणा होती है। तथा इन ही गुणस्थानों में क्रम से ५, ११, २२,१८ ३५, ४१, ४६, ५३, ५६, ७५, ६५, ६६, ६८, ६३ प्रकृतियों की उदोरणा नहीं, अनुदोरणा है। सस्त्र विवरणतिस्थाहारा लुगवं तित्थं णमिच्चगादितिये । तत्सत्रकम्मियाण तःगुणठाण ए संभवदि ।।६।। मर्थ-मिथ्यात्व गुणस्थान में नाना जीवों की अपेक्षा से १४८ प्रकृतियों को सता है परन्तु तीर्थकर तथा प्राहारक द्विक ( पाहारक शरीर माहारक
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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