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________________ . (३६ ) पट्टापरामदोसा इंदिणाणपांच केवलिम्हि जदो। तेग सादासादजणहदुधलं पत्थि इंचियजं ॥७॥ अर्थ-केवली भगवान के मोहनीय कर्म न रहने से रागवेष नहीं है, .. ज्ञानावरण का क्षय हो जाने से उनके इन्द्रिय जन्म ज्ञान नहीं है इस कारण उनके माता प्रसाता के उदय से होनेवाला इन्द्रिय जन्य सुख दुख भी नहीं है । समयढिदिगो बंधो सावस्सुवाणि गो जदो तस्स । तण प्रसादस्सुको सादस वेगपरिणमदि ।।७६।। अर्थ-फेवली भगवान के एक समय की स्थिति वाला साता वेदनीय कर्म का बन्ध होता है मत: बह उदय रूप ही होता है ! इस कारण असाता बेदनीय कर्म का भी उदय साता के रूप में परिणत हो जाया करता है । एवेण कारपोण सुसादस्सेव दुणिरतरो उदयो। तेरणासावरिण कित्ता परीसहा जिराबरे गस्थि ।।७७॥ अर्थ-इस कारण केवली भगवान के निरन्तर साता वेदनीय कर्म का उदय रहता है । अतएव असाता वेदनीय के उदय से परिषह केवली को होने पाली नहीं होती। उदय रूप प्रकृति-संख्यासत्तरसेक्कारखचटुसहियसयं सगिगिसीदि छदुसदरो। छायट्टिसट्टिरावसग वण्णास दुदालवारुदरा ॥७८ अर्थ-मिथ्यात्व प्रादि गुणस्थानों में क्रम से ११७, १११, १००, १०४, २७, ८१,७६, ७२, ६६, ६०, ५६ ५७ ४२ और १२ प्रकृतियां उदय होती हैं। अनुदय प्रकृतियांपंचक्कारसयावीसट्ठारसपंतीस इगिछादालं। पणं छप्पण्णं विति पणसदिछ असीदि दुगुण पणघण्णं ॥७६॥ अर्थ-मिथ्यात्व आदि मुरणस्थानों में क्रम से ५ ११ २२ १८ ३५ ४१. ४६ ५० ५६ ६२ ६३ ६५ ८० और ११० प्रकृतियों का उदय नहीं । होता। उवयस्सदीरणस्स य सामित्तादो स विज्जवि विसेसो । मेस्तूण तिम्णि ठाणं पमत जोगी अजोगी य ६०॥ | .......
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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