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(३८४ ) मूल प्रकृति
शानावरण; दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय इस तरह प्रकृति बंधन प्रकार का है। उसमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार घाति कर्म हैं । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ये चार अधाति कर्म हैं।
ज्ञानावरण कर्म ज्ञान को ढकने वाला है जिस तरह दीपक को घड़े से ढक दिया जावे उसके समान है। दर्शनावरण कर्म प्रात्मदर्शन नहीं होने देता । जैसे सूर्य के ऊपर मेघ पाच्छादित होने से सुरज दिखाई नहीं देता। वेदनीय कर्म सुख दुःख दोनों को कराता है। जैसे खड्ग धारा में लगी हुई शहदकी बूद को चाटते हुए जीभ कटकर सुख दुःस्त्र दोनों ही होते हैं । मोहनीय कर्म संसार में मोहित कर देता है । असे शराब पीने वाला माय ! प्राणु कार्य जीव को शरीरमें रोक देता है लोह की जंजीर से दोनों पांव फंसे हुए बैठे मनुष्य के समान । माम कर्म अनेक तरह शरीर बना देता है । जैसे चित्रकार अनेक तरह के चित्र तैयार करता है । गोत्र कर्म उच्च और नीच कुल में उत्पन्न करा देता है। जैसे कुम्भकार वर्तनों का। अन्तराय कर्म अनेक विघ्नों को करता है । जैसे भंडारी दानमें विश्न करता है।
जानावरणीयं पंचविधम् ॥५॥ मति ज्ञानावरण, श्रुत ज्ञानावरण, अवधि ज्ञानावरण, मनः पर्यय ज्ञानावरण तथा केवल झानावरण ये ज्ञानावरण के पांच भेद हैं।
इसमें इन्द्रियों तथा मन से अपने २ विषयों को जानना मतिज्ञान है । उसको विस्मृत करने वाला मतिज्ञानावरण है । मतिज्ञान से जाने हुए अर्थ के आधार से अन्यार्थ को जानना श्रुत ज्ञान है। इसको विस्मृत करने वाला श्रुत ज्ञानावरण है । रूपी द्रव्य को प्रत्यक्ष रूप से जानना अवधि ज्ञान है और उसको विस्मरण करने वाला अवधि ज्ञानावरण है। किसी अन्य के मन में रहने वाले विषय को जानना मन: पर्यय ज्ञान है और उसको विस्मरण करने वाला मनः पर्यय ज्ञानावरस है । त्रिकाल गोचर अनन्त पदार्थों को युगपत जान लेना केवल ज्ञान है। इसको विस्मृत करने वाला केवल ज्ञानावरण है । इस प्रकार ज्ञानावरण के पांच भेद हैं।
वर्शनावरणीयं नवविधम ।५२१ दर्शनावरण के ६ भेद हैं-चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधि दर्शनावरण, केवल दर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानद्धि ।