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________________ (३६) पणवणं-५७ में प्राहारक के २ घटाने से मिथ्यादृष्टी में ५५ शेष रहते है। मारणा- मिया मागे से साझाद में ५० शेष रहते हैं । तिदाल अनन्तानुबन्धी के ४ तथा श्रीदारिकमिश्र,क्रियिक मिश्न, कार्माण योगत्रय इन सातों को घटाने से सम्यग्यिध्यादृष्टि के ४३ शेष रहते हैं। पहले में घटाये हुए घोटारिक मिश्र, वैक्रियिक मिश्र, कार्माण काय, ये योगत्रय, ऊपर के ४३ सेतालीस में मिलाने से असंयतके ४६ भेद होते हैं। सत्ततिसाय-उनमें, प्रत्याख्यान, चतुष्क, वैश्विक मिश्र, कार्माण का ययोगत्रय, तीन असंयम इन नौ को घटाने से देश संमत में ३७ बच जाते हैं। चवीसं बचे हुए शेष ग्यारह संयम तथा प्रत्याख्यान चतुष्क, इन पंद्रह को घटाकर तथा ग्राहारक दो को मिला देने से प्रमत्त संयम में २४ चौवीस शेष रहते हैं। दुवाबीसं-- आहारक तथा पाहारक मिश्र दो को घटाने से अप्रमत्त, अपूर्व गुरणस्थान में २२ बानीस शेष रहते हैं। सोलस-हास्यादि छह नोकषायों को २२ बावीस में घटा देने से अनिवृत्ति करण के पूर्व भाग मैं १६ सोलह शेष रहते हैं । जावमा नौवें में षो पहले कहे हुए १६ सोलहमें नपुंसक वेद, स्त्री वेद, पुरुष वेद, क्रोध, मान, माया के अनिवृत्ति करण के शेष भाग में सूक्ष्म लोभ नाष के नवम में क्रम से घटाने से शेष १५ पंद्रह रहते हैं । १५, १३, १२, ११; १०, ६, ऊपर के गुणस्थान में मन के चार वचन के चार प्रौदारिक योग के नौ, सत्यानुभय मनोयोग, सत्यानुभय, वाक्योग, मौदारिक, प्रौदारिक मिश्र, कार्मण काययोग ऐसे सात सयोग केवली में होते हैं । बंधश्चतुर्विधः ।४६। प्रत्येक पात्म-प्रदेश में सिद्ध राशिके अनन्तवें भाग प्रमाण तथा अभव्य वाशि के अनन्तगुणे प्रमित मनन्त कार्माण परमाणु प्रतिक्षरण बंध में प्राने वाला प्रदेवा बंध है, वह योगसे होता है। स्थिति और अनुभाग-बंध कषायों से होते हैं। प्रष्ट कर्माणि ॥५०॥ कम तीन प्रकार का है-द्रव्य कर्म, भाव कर्म और नो कर्म । पोद्गलिक काणि पर्गणाएं जो प्रात्मा से संबद्ध हो जाती हैं वह द्रव्य-कर्म है । उस द्रव्य कर्म के निमित्त-कारणभूत आत्मा के शुभ अशुम परिणाम भाव कम है। पोवारिक आदि सीन शरीर और ६ पर्याप्तियों को बनाने वाला नोकर्म है। द्रष्य कर्म के मूल-प्रकृति, उत्तर-प्रकृति और उत्तरोत्तर प्रकृति इस तरह तीन प्रकार के भेद है।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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