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________________ स्कर शरखरम गिरियु, परमार्थ पूर्वशंखयतिपति मतदौल ॥ सत्तर लाख ५६ हजार करोड़ वर्ष का एक पूर्व वर्ष होता है । उनको कंचाई नब्बे धनुष की थी। उनके शरीर का रंग हरा था। बेलपत्र झाड़ के नीचे तपश्चर्या करके केवल ज्ञान प्राप्त किया और उनके साथ सतासी गणधर धरणी श्री नाम की मुख्य अजिका भी थीं। ब्रह्मयक्ष, माणवी यक्षिणी और भगवान् का श्री वृक्ष लांछन [चिन्ह ] था । आपने समवशरण सहित अनेक देशों में भ्रमण करते हुए सम्मेद शिखर से मोक्ष प्राप्त किया उसकाल में विष्वाण नाम का चौथा रुद्र हुआ ॥ १० ॥ श्रेयांसनाथ जब शीतल नाथ तीर्थङ्कर का छत्तीस लाख छब्बीस हजार वर्ष से मिला हुआ एक करोड़ सागरोपम के अन्त में बचा हुना अर्ध पल्योपम काल में जब धर्म की हानि होने की सम्भावना होने लगी उस समय में नलिन प्रभ नाम का देव अच्युत कल्प के पुष्पोत्तर विमान से आकर सिंहपुर के विष्णु देव राजा उनकी राणी वेणदेवी की कोख से अंशांसनाथ तीर्थकर हुए । उनकी प्रायु चौरासी लाख वर्ष थी और अस्सी धनुष ऊँचाई थी । सुवर्णमयी शरीर था। तुम्पूर्ण [शिरीश [ नाम के वृक्ष के नीचे तपश्चर्या करके मोक्ष फल प्राप्त किया। उस समय उनके साथ मुख्य कुन्थु आदि [७७] गणाधर थे और धारणा नाम की मुख्य अजिका थी। यक्षेश्वर यक्ष थे और गौरी यक्षिणी गेंडा का चिन्ह था। ऐसे श्रेयांस नाथ तीर्थकर ने अनेक देशों में समवशरण सहित विहार कर सम्मेद शिखर पर जाकर मोक्ष फल प्राप्त किया ॥ ११ ॥ उस श्रेयांसनाथ तीर्थङ्कर के काल में विजय नृप नाम के प्रथम राम और त्रिपृष्ट केशव, महाशुक्र कल्प से आकर पोदनपुर के अधिपति प्रजा-पाल महाराजा के पुत्र उत्पन्न हुया । और पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान वृद्धि को प्राप्त होते समय उनकी वृद्धि दूसरे प्रश्वग्नीव नाम के विद्याधर को सहन न होने के कारण उनके ऊपर अाक्रमण कर अपने चक्र के द्वारा मारना चाहा । सो उस चक्र से ही राम केशव ने अश्वग्रीव को मार कर भरत के तीन खंड को अधीन करके उसको भोगते हुए शंख चक्र गदा शक्ति धनु दंड असि [तलवार] इत्यादि सात रत्नों के अधिपति केशव हुए, हल मूसल गदारत्न माला विधान इत्यादि . चार रत्नों के अधिपति राम हुये । सुख से राज भोग करते हुये प्रानन्द के साथ साथ समय व्यतीत करने लगे । लो कुछ दिन पश्चात् केशब कृष्ण लेश्या के
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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