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चल रहा था उस समय श्री वर्म, श्रीधर देव, अजितषण चक्रवती, अच्युतेन्द्र पद्मनाभराजा होकर पंचानुत्तर के बैजयन्त विमान में उत्पत्र हुए अहमिन्द्र देव ने आकर चन्द्रपुर नामक नगर के महाषेण राजा की रानी लक्ष्मणा देवी की कोख से चन्द्रप्रभु नामक तीर्थङ्कर के रूप में जन्म लिया ।
उन तीर्थङ्कर की आयु दस लाख [१०,०००००] पूर्व थी भौर शरीर की ऊंचाई १५० धनुष तथा रंग धवल वर्ण था। नाग कुज वृक्ष के नीचे महान तप के द्वारा घातिया कर्म की निर्जरा करके केवलज्ञान प्राप्त किया । उनके साथ उदात्त अादिक तिरानवें गणधर थे । वरुण श्री आदि अनेक अयिकाएँ थीं । विजय यक्ष और ज्वालामालिनी यक्षिणी थी। भगवान् का लांछन चन्द्र था। इन चन्द्रप्रभ भगवान ने अपने समवशरण सहित सम्मेद पर्वत पर पाकर सम्पूर्ण कर्म नष्ट करके सिद्ध पद पाया ।। ८ ।।
पुष्पदत्त जिस समय चन्द्र प्रभ तीर्थयार का काल नौ करोड़ सागरोमम चल रहा था उस समय महापद्मचर नाम का प्राणतेन्द्र पाकर काकन्द्रीपुर के राजा सुग्रीव की रानी जयरामा की कोख से पुष्पदन्त तीर्थकर हुए । उनकी प्रायु दो लाख की पूर्व थी । शारीर की ऊंचाई सौ धनुष ऊंची थी। शरीर का वर्ण श्वेत था। नागफणी वृक्ष के मूल में तपश्चरण कर चारों घातिया नष्ट कर केवल ज्ञान की प्राप्ति की । उस समय उनके समवशरण में विदर्भ आदि ८८ गणधर तथा घोषिति, विनयती आदिक अजिकाएं थी । और अजिलयक्ष महाकाली यक्षिणी मगरलांछन सहित अपने समवशरण के साथ विहार करते हुए सम्मेद शिखर पर जाकर सम्पूर्ण कर्मों का क्षय किया । इन्हीं के समय में रुद्र नाम का तीसरा का हुया ॥॥
शीतलनाथ उन सुविधि नाथ पुष्पदत्त तीर्थङ्कर का काल जब नौ करोड़ सागरोपम चल रहा था उस समय इस काल के अन्त में पल्योपम का चतुर्थ भाग काल बाकी रहते हुए धर्म की हानि होने लगी । उसी समय में पद्मगुल्म चर का देव पारणेन्द्र विमान से प्राकर भद्रलापुर के राजा दृढ़रथ तथा उनकी रानी सुनन्दा देवी की कोख से शीतलनाथ तीर्थंकर के रूप में उत्पन्न हुआ। उनकी पायु एक लक्ष पूर्व थी।
यहां कोई प्रश्न करेगा कि पूर्व का प्रमाण क्या है ? तो इसके विषय में कहा है कि 'सुरसरिणगण घनन । भरदंबुद मेघ पवन जलद पथंपु।