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(४०,००००० ) पूर्व थी और उनके शरीर का उत्सेष ३०० धनुष का था, रंग स्वर्ण मय था । प्रियंगु वृक्ष के नीचे इन तीर्थंकर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया था । इनके समवशरण में वज्रनाम इत्यादि ११६ गणधर थे, अनन्त मती श्रादि अर्यिकाएं थी, तु वरयक्ष पुरुषदत्ता यक्षणी थी । चक्रवाक नाम के पक्षी के चिन्ह सहित भगवान् सुमति नाथ तीर्थकर अपने समवशरण सहित अनेक देश विहार करते हुये अन्त में सम्मेद शिखर पर आकर मोक्ष पद को प्राप्त हुए ||५॥
पद्मप्रभु
उस सुमतिनाथ तीर्थंकर का काल जब २० सहस्त्र कोटि ( ६०००,००००००००) प्रर्वतन कर रहा था। उस काल में उपरिम प्रवेयक से अपराजित चरनाम हुनकर के राजा तथा उनकी रानी सुशीमा के गर्भ से पद्मप्रभु तीर्थंकर के रूप में जन्म लिया। इनकी प्रायु ३० लाख ( ३०,००००० ) पूर्व थी । तथा २५० धनुष ऊंचे शरीर वाले थे । इनका शरीर हरित वर्ण का था । इन्होंने सिरीश नाम के वृक्ष के नीचे घातिया कर्म को नष्ट करके केवलज्ञान पाया ।
उस केवल ज्ञान प्राप्ति के समय इनके साथ १११ गणधर तथा रति रादि मुख्य आर्यिकाएं थी और कुसुमयक्ष मनोवेगा यक्षणी, कमल लांछनतथा भगवान् अपने समवशरण सहित विहार करते हुए सम्मेद शिखर पर अपने सम्पूर्ण कर्म की निर्जरा करके मोक्ष पद को प्राप्त हुए ।। ६ ।। सुपार्श्वनाथ
उन पदुम प्रभु तीर्थङ्कर का काल ६. : करोड
सागर प्रमाण
[१०००, ०००००००] प्रर्वतते समय मध्यम ग्रेवेयक से नन्दि शेरणा वर नामक भद्रविमान के हिमिन्द्र ने आकर वाराणसी नगर के राजा सुप्रतिष्ठ तथा उनकी रानी पृथ्वी देवी की कुक्षी से सुपार्श्व नाथ नाम के तीर्थङ्कर उत्पत्र हुए । उन सुपाएव नाथ तीर्थङ्कर की आयु २० लक्ष [२०,००००० ] पूर्व थी, और उनके शरीर की ऊंचाई २०० धनुष थी। शरीर का रंग हरित वर्ण का था और उन्होंने नागपाद वृक्ष के नीचे तप करके केवल ज्ञान प्राप्त किया तथा पंचानवें गणधर वल आदि तथा मीन श्री आदिक अर्यिकाएँ, परनन्दी यक्ष कालियज्ञणी तथा स्वस्तिक लांछन सहित अपने समवशरण से देश में विहार करते हुए सम्मेदपर्वत पर आकर सम्पूर्ण कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष गये ॥ ७ ॥
चन्द्रप्रभु
जब सुपार्श्व तीर्थंकर का काल नौ सौ करोड़ सागर [२००,०००००००