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________________ एकलानगोता संभवनाथ क्षेमपुर के राजा विमल ने संसार से विरक्त होकर मुनि दीक्षा ली। कठोर तप किया तथा सोलह कारण भावनाओं द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया । फिर प्रथम ग्रेवक विमान में सुदर्शन नामक अहमिन्द्र देव हुआ । वहां से प्राधु समाप्त करके भगवान अजितनाथ की मुक्ति से ३०,००००० लाख करोड़ सागर बीत जाने पर श्रावस्ति के इक्ष्वाकु शी राजा विजितारी की राणी सुशेना के गर्भ में पाया और तीसरे तीर्थकर संभव नाथ के रूप में जन्म लिया। प्रापका रंग स्वर्ण सरीखा था। आपका शरीर ४०० धनुष्य ऊंचा और आयु ६०,००००० लाख पूर्व की थी । आपके पग में घोड़े का चिन्ह था बहुत समय तक राज्य करके विरक्त होकर शाल्मली वृक्ष के नीचे मुनिपद ग्रहण किया । तपस्या करके केवल ज्ञान प्राप्त किया । आपके चारु दत्त प्रादि १०५ गणधर थे, धर्म श्री आदि प्रायिकाएं थी । श्री मुख यक्ष और प्रज्ञप्ति अक्षरगी थी। सम्मेद शिखर से प्रापने मुक्ति प्राप्त की ॥ ३॥ अभिनन्दन नाथ जब संभवनाथ तीर्थंकर का काल १,००,००,००,०००००० करोड़ पूर्व परिवर्तन कर रहा था उस समय महा लचर नामक अनुत्तर विमान का अहमिन्द्र पाकर साकेत नगर के संवर नामके राजा तथा उनकी सिद्धार्थी रानी के गर्भ से अभिनन्दन नाम के तीर्थकर का जन्म हुआ। उन अभिनन्दन तीर्थंकर की प्रायु ५०,००००० लाख पूर्व की थी। तथा उनके शरीर की ऊंचाई ३५० धनुष थी और उनके शरीर का रंग सोने के समान था । शाल्मली के वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग अर्थात् ध्यान में स्थित होकर अन्त में धातिया कर्म को मष्ट करके केवल ज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष पाया। इन तीर्थकर के साथ वनचव आदि १०३ गणधर तथा मेरुषेणा आदि अर्यिकाऐं हुई । योश्वर यक्ष, और बत्रसूखला नाम श्री यक्षणी बन्दर लालन्छन सहित अभिनन्दन तीर्थंकर अपने समवसरण द्वारा देश विदेश विहार करते हुए सम्मेद पर्वत पर आकर मोक्ष पद को प्राप्त हुए ।। ४ ।। सुमतिनाथ उन अभिन-दन तीर्थंकर का काल नव करोड़ लक्ष्य ( ९०००००,०००) लाल सागरोपम व्यतीत होते समय में पंचानुत्तोरो में से बंजयन्त विमान का रतिषेण अहमेन्द्र आकर साकेत राजधानी के राजा मेघ रन तथा उनकी रानी मंगला देवी से सुमति नाथ नामक तीर्थकर उत्पन्न हुमा । उनकी प्राह चालीस लाख
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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