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(२०) एक हजार वर्ष तपस्या करने के बाद प्रापको केवल ज्ञान हुा । तदनंतर १,००० हजार वर्ष कम १०.०.००० लाख पुर्व तक आप समस्त देशों में बिहार करके धर्म प्रचार करते रहे । अापके उपदेश के लिए समवशरण नामक विशाल सभा मंडप बनाया जाता था । अन्त में आपने फैलाश पर्वत से पर्यकासन (पलथी) से मुक्ति प्राप्त की।
विशेषार्थ-आपका ज्येष्ठ पुत्र भरत, , भरत क्षेत्र का पहला चक्रवर्ती था उस ही के नाम पर इस देश का नाम भारत प्रख्यात हुआ । आपका दूसरा पुत्र बाहुबली प्रथम कामदेव था तथा चक्रवर्ती को भी युद्ध में हराने वाला महान बलवान था। उसने मुनि दीक्षा लेकर निश्चल खड़े रह और एक वर्ष तक निरा हार रहकर तपस्या की और भगवान वृषभनाथ से भी पहले मुक्त हुआ ।
भगवान वृषभनाथ का पौत्र (नाति, पोता) मरीचि कुमार अनेक भव बिताकर अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर हुआ । आपकी पुत्री ब्राह्मी, सुन्दरी आर्यिकाओं की नेत्री थी। आपके वृषभ सैन आदि ८४ गगधर थे।
आप सुषमा दुषमा नामक तीसरे काल में उत्पन्न हुए और मोक्ष भी तीसरे ही काल में गए । जनता को आपने क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, इन तीन वर्गों में विभाजित करके सबको जीवन निर्वाह की रीति बतलाई। इस कारण आपको प्रादि ब्रह्मा तथा १५ वां कुलकर भी कहते हैं ॥ १ ॥
अजित नाथ भगवान वृषभ नाथ के मुक्त हो जाने के अनन्तर जब ५० लाख करोड़सागर का समय बीत चुका, साकेतपुर अयोध्या के राजा जितशत्रु की महाराणी इंवसेना के उदर से द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ का जन्म हुआ । पूर्ववर्ती तीसरे भव में ये राजा विमलवाहन थे । राजा विमलवाहन ने मुनि अवस्था में तीर्थकर प्रकृति का बंध किया था। वहां से विजय नामक अनुत्तर विमान का अहमीन्द्र हुआ। और अमीन्द्र प्रायु समाप्त कर अजितनाथ तीर्थकर हुआ, इनका शरीर ४५०: धनुष ऊंचा था, स्वर्ण जैसा रंग था । ७२,००००० लाख पूर्व की आयु थी, पर में हाथी का चिन्ह था। आपने अपने यौवन काल में राज्य किया, फिर विरक्त होकर केले के वृक्ष के नीचे मुनि दीक्षा ली और तपश्चरण करके केवल ज्ञान प्राप्त किया । अापके सिंहसेनादि ५२ गणधर थे और प्रकुब्जादि प्रायिकाएं थीं महायक्ष रोहिनी यक्षिणी थी। आपने सम्मेद शिखर से मुक्ति प्राप्त की । भगवान अजितनाथ के समय में सगर नामक दूसरे चक्रवर्ती हुए। जो कि तपश्चरण करके मुक्त हुए। जित शत्रु नामक दूसरा रुद्र भी आपके समय में हुमा ।।