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अब इस भरत क्षेत्र के पानी की भाप गम से कहते है
श्रादिनाथ
भगवान वृषभ देव के पूर्व १० भव यह है— जयवर्मा, २ महाबलविद्याघर ३ ललितांग देव ४ बज्जंघराजा ५ भोग भूमिया ६ श्री घर ७ सुविध (नारायण) = अच्युत स्वर्गका इन्द्र ६ वज्रनामि चक्रवर्ती इस भव में सोलह कारण भावना के बल से तीर्थंकर प्रकृतिका बंध किया, वहां से चयकर भरत क्षेत्र के सुकौशल देश की अयोध्या नगरी में अन्तिम कुलकर नाभिराजा के यहां मरूदेवी माता के कोख से प्रथम तीर्थंकर के रूप में जन्म लिया। आप का शरीर ५०० धनुष ऊंचा था, आयु चौरासी लाख पूर्व थी शरीर का रंग तपे हुए सोने के समान था । शरीर में १००८ शुभ लक्षण थे । ऋषभ नाथ नाम रखा गया । वृषभनाथ तथा आदिनाथ भी आपके दूसरे नाम है । आपके दाहिने पैर में बैल का चिह्न या इस कारण ग्रापका बैलका चिह्न प्रसिद्ध हुआ और इसलिये नाम भी वृषभनाथ पड़ा ।
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आपका २० लाख पूर्व समय कुमार अवस्था में व्यतीत हुप्रा । श्रापका ( यशश्वती और सुनंदा ) नामक दो राज पुत्रियों से विवाह हुआ । ६३ लाख पूर्व तक राज किया । श्रापकी राणी यशस्वती के उदर से भरतादि Se पुत्र तथा ब्राह्मी नामक एक कन्या हुई और सुनन्दा रानी से बाहुबली नामक एक पुत्र और सुन्दरी नामक कन्या हुई ।
आपने राज्य काल में जनता को खेती बाड़ी, व्यापार मस्त्र शस्त्र 'चलाना, वस्त्र बनाना, लिखना पढ़ना, अनेक प्रकार के कला कौशल श्रादि सिखलाए | अपने पुत्र भरत को नाट्य कला, बाहुबली को मल्ल विद्या, ब्राझि को अक्षर विद्या, सुन्दरी को अक विद्या तथा अन्य पुत्रों को अश्व विद्या, नीति आदि सिखलाई ।
राज
८३,०००००लाख पूर्व श्रायु बीत जाने पर राज सभा में नृत्य करते हुए निलांजना नामक अप्सरा की मृत्यु देखकर आपको संसार, शरीर और विषध भोगों से वैराग्य हुआ तब भरत को राज्य देकर आपने पंच मुष्टियों से केशलोच करके सिद्धों को नमस्कार करके स्वयं मुनि दीक्षा ली । छै मास तक श्रात्म ध्यान में निमग्न रहे। फिर छः मास पीछे जब योग से उठे तो आप को लगातार छः मास तक विधि अनुसार ग्राहार प्राप्त नहीं हुआ । इस तरह एक वर्ष पीछे हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने पूर्वभव के स्मरण से मुनियों को आहार देने की विधि जानकर आपको ठीक विधि से ईख के रस द्वारा पारना कराई।