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________________ करण हैं। परस्त भगवान की भक्ति करना अरहत भक्ति है। मुनि संघ के नायक प्राचार्य की भक्ति करना आचार्य भक्ति है। उपाध्याय परमेष्ठि की भक्ति करना बहुश्रु त भक्ति है। जिनवाणी की भक्ति करना प्रवचन भक्ति है। छै आवश्यक कमी को सावधानी से पालन करना आवश्यक परिहारिणी है। जैनधर्म का प्रभाव फैलाना मार्ग प्रभावना है। साधर्मीजन से अगाध प्रेम करना प्रवचन वात्सल्य है । इन सोलह भावनाओं में से दर्शन विशुद्धि भावना का होना परमावश्यक है। दर्शन विशुद्धि के साथ कोई भी एक दो तीन चार प्रादि भावना हो या सभी भावना हों तो तीर्थकर प्रकृती का बंध हो सकता है। अब तीर्थंकरों के विषय में ग्रन्थकार सूत्र कहते हैं चतुर्विशति स्तीर्थकराः॥७॥ अर्थ-भरत ऐरावत क्षेत्र में दुःषमा सुषमा काल में कम से चौबीस तीर्थकर होते है। १ श्री वृषभ नाथ २ श्री अजित नाथ ३ श्री संभव नाथ ४ श्री अभिनंदननाथ ५ सुमती नाथ ६ पद्मप्रभु ७ सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु ६ पुष्प दंत १० शीतल नाथ ११ श्रेयांसनाथ १२ वासु पूज्य १२ विमल नाथ १४ अनंत नाथ १५ धर्मनाथ १६ शांति नाथ १७ कुथनाथ १८ अरहनाथ १६ मल्लि नाथ २० मुनिसुव्रत २१ नमिनाय मी २२ नेमिनाथ २३ पार्श्वनाथ २४ महादीर । ये इस भरत क्षेत्र के वर्तमान युग { इस हुंडावसपिसी ) के चौबीस तीर्थकर हैं। अतीतकाल के भौबीस तीर्थंकरों के नाम निम्न लिखित हैं १ श्री निर्वाण २ सागर ३ महासाधु ४ विमल प्रभु ५ श्रीधर ६ सुदत्त ७ अमलप्रभ ८ उतर ६ अंगीर १० सन्मती ११ सिंधु १२ कुसमांजली १३ ११३ शिवगरण १४ उत्साह १५ ज्ञानेश्वर १६ परमेश्वर १७ विमलेश्वर १५ यशोधर १६ कृष्णमति २० ज्ञानमति २१ शुध्यमति २२ श्री मद्र २३ पद्मकान्त २४ प्रत्तीकान्त । आगामी काल में होने वाले तीर्थंकरों के नाम निम्नलिखित हैंमहापद्म २ सुरदेव ३ शुपार्श्व ६ स्वयंप्रभ ५ सर्वात्म भूत ६ देवपुत्र ७ कुलपुत्र ८ उदक ६ पौष्टिल १० जयकीति ११ मुनि सुव्रत १२ अरनाथ १३ निःपाप १४ निःकषाय १५ विमल १६ निर्मल १७ चित्रगुप्त १८ समाधि गुप्त १६ स्वयंभू २० पनिवर्तक २१ जय २२ विमल २३ देवपाल २४ अनन्तीयं ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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