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________________ "कृष्ण लेश्या के उत्कृष्ट अंश से सातवें नरक के अधि स्थान नामक इन्द्रक विल में, जघन्य अंश से पांचवें नरक के तिमिश्र विलमें, मध्यम मंश से मरा हुमा बीच के नरकों में उत्पन्न होता है। नील लेश्या के उत्कृष्ट अंश से पांचवें नरक के अन्न नामक इन्द्रक दिल में, जघन्य अंश से मरकर तीसरे नरक के अन्तिम पटल के संप्रज्वलित 'इन्द्रक दिल में और मध्यम प्रश से बीच के नरकों में उत्पन्न होता है । कापोत लेश्या के उत्कृष्ट प्रश से भरा हुआ जीव सीसरे नरक के -विचरम पटल संज्वलित इन्द्रक बिल में, जघन्य अश से मरकर पहले नरक के सीमन्त इन्द्रक बिल में और मध्य म अंशों से मरा हा जीव इनके बीच के “मरक स्थानों में उत्पन्न होता है । इसके सिवाय अशुभ लेश्यानों के मध्यम अंश के साथ मरे "हए जीव ''पूर्वबद्ध आयु अनुसार कर्मभूमिज मिथ्यादृष्टि मनुष्य तियंञ्च होते हैं । पीत लेण्या के मध्यम अश पूर्वबद्ध प्रायु अनुसार भोग-भूभिज मिथ्याइष्टि मनुष्य तिर्यञ्च तथा भवनवासी ब्यन्तर ज्योतिषी देव होते हैं । कृष्ण नील कापोत पीत लेश्या के मध्यम अंशों से मरे हुए जीव मनुष्य तिर्यञ्च, भवनत्रिक, सौ. 'धर्म ऐशान के मिथ्यादृष्टि देव होते हैं। कृष्ण नीष कापोत के मध्यम "प्रेशों से मरने वाले तिर्यंच, मनुष्य, अग्निकायिक, वायुकायिक, साधारण वनस्पति विकलत्रय में से किसी में उत्पन्न होते हैं। प्रयदोत्ति छलेस्सायो सुहतियलेस्सा ह देशविरवत्ति । एतत्तो सुक्कलेस्सा अजोगिरणं अलेस्सं तु ।३०। द्विविधं भव्यत्वं ॥४२॥ भव्य और प्रभव्य ये भव्य मार्गणा के दो भेद हैं। उसमें सम्यादर्शन ज्ञानचारित्र प्राप्त करके अनन्त चतुष्टय स्वरूप में परिणमन करने योग्य भव्य जीव होते हैं। सम्यक्त्वादि सामग्री को न प्राप्त करके मोक्ष न जाने योग्य प्रभव्य जीव होते हैं। स्थावर काय से लेकर अयोगी केवली तक १४ गुरणस्थानों में भव्य होते हैं। अभव्य मिथ्या-दृष्टि गुण-स्थानी होते हैं। सिद्ध भगवान में भव्य और प्रभव्य की कल्पना नहीं है। षड्विधा सम्यक्त्वमार्गरणा ॥४३॥ उपशम, वेदक और क्षायिक ऐसे तीन तथा मिथ्यात्व, सासावन एवं मिश्र ये तीन प्रतिपक्षी मिलकर सम्यक्त्व मार्गणा के छह भेद होते हैं। औपशमिक सम्पत्व के उत्पत्ति निमित्त से प्रथम उपशम व द्वितीयः उपशम ये दो भेद
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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