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________________ समस्त संसारी जीवों को जी संक्षेप से बतलाने की विधि है उसको 'मीवसमास' कहते हैं । (समस्यन्ते संक्षिप्यन्ते जीवाः येषु यैर्वा ते जीवसमासाः) जीवसमास के १४ भेद हैं १ एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त, २ एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त, ३ एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त, ४ एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त, ५ दोइन्द्रिय पर्याप्त, ६ दोइन्द्रिय अपर्याप्त, ७ तीनइन्द्रिय पर्याप्त, ८ तीन इन्द्रिय अपर्याप्त, ६ चार इन्द्रिय पर्याप्त, १० चार इन्द्रिय अपर्याप्त, ११ पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्त, १२ पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्त, १३ पंचेन्द्रिय असंशी पर्याप्त, १४ पंचेन्द्रिय प्रसंगी अपर्याप्त । पर्याप्त अपर्याप्त जीवों का स्वरूप आदि प्रागे कहा आयगा, अतः यहां पर नहीं देते। जिनके द्वारा समस्त जीवों को ढूंढा जावे, उनकी खोज की जावे [ मृग्यन्ते जीवाः यासु याभिर्वा ताः मार्गणाः ] उनको मार्गणा कहते हैं, वे गई ईदियं च काये जोए वैए कषायणाणे य। संजभदेसरलेस्सा मधिया सम्भरा सांण पाहारे ।। यानी-गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेब, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार ये १४ मार्गणाएँ हैं। विविधमेकेन्द्रियम् ॥२४॥ प्रथ-एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं-१ भादर, २ सूक्ष्म । बादरसुहुमुदयेण य बावरसुहुमा हवंति तद्दे हा । घादसरीरं शूलं अघावदेहं हवे सुहम ॥१३॥ तद्दे हम गुलरस्स य प्रसंखभागस्स विदमारणं तु। प्राधारे थूलाम्रो सन्वस्थ पिरंतरा सुहुमा ॥१४॥ पानी-बार नाम कर्म के उदय से मादर और सूक्ष्म नाम कर्म के उदय से सूक्ष्म शरीर होता है। जो शरीर दूसरे को रोके तथा दूसरे द्वारा रुके वह बादर शरीर है। जो शरीर दूसरे से न रुके तथा स्वयं दूसरे को न रोके वह मुक्ष्म शरीर है । अंगुल के असंख्यात, भाग प्रमाण उन बादर सूक्ष्म जीवों का शरोर होता है। बादर एकेन्द्रिय जीव किसी के आधार से रहते हैं किन्तु सूक्ष्म जीव सब जगह हैं, विना आधार के रहते हैं। विकामयम् ॥१५॥ . . .
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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