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________________ (३६२) अर्थ-विकलेन्द्रिय जीवों के ३ भेद हैं १-दोइन्द्रिय, २-तीन इन्द्रिय, ३-चार इन्द्रिय । जिनके स्पर्शन रसना इन्द्रिय होती हैं वे दो इन्द्रिय जीव हैं जैसे जोंक शंख सीपी । जिनके स्पर्शन रसना, प्रारण होती है वे तीन इन्द्रिय जीव हैं जैसे खटमल जू आदि। जिनके स्पर्शन रसना घ्राण और चक्ष होती है वे चार इन्द्रिय जीव हैं जैसे-मक्खी मच्छर आदि। एकेन्द्रिय जीव स्पर्शनइन्द्रिय से अधिकसे अधिक चार सौ धनुष (४ हाम का एक धनुष) दूरवर्ती पदार्थ को जान सकता है। दो इन्द्रिय ८०० धनुष, तीन इन्द्रिय १६०० धनुष और चार इन्द्रिय जीव ३२०० धनुष दूर के पदार्थ को स्पर्शन इन्द्रिय से जान सकते हैं। दो इन्द्रिय जीव रसना इन्द्रिय द्वारा ६४ धनुष दूरवर्ती पदार्थ को जान सकता है, तीन इन्द्रिय जीव १२८ धनुष और चार इन्द्रिय जीव २५६ धनुष दूर तक रसना इन्द्रिय से जान सकता है । तीन इन्द्रिय जीव सौ धनुष दुरवर्ती पदार्थ को घ्राण से जान सकता है, चारइन्द्रिय जीव २०० दी सी धनुष दूर के "दार्थ को ब्राण से जान सकता है । चार इन्द्रिय जीव चक्षु इन्द्रिय से अधिक से अधिक २६५४ योजन दूरवर्ती पदार्थ को देख सकता है। पंचेन्द्रिया द्विविधाः ॥२६॥ अर्थ-पंचेन्द्रिय जीवों के दो भेद हैं-१ संज्ञी, २ असंज्ञी । जो मन द्वारा शिक्षा, क्रिया; पालाप (शब्द का संकेत) ग्रहण कर सकें वे संज्ञी हैं । जैसे देव मनुष्य नारको, हाथी घोड़ा, सिंह, कुता बिल्ली आदि । जो शिक्षा क्रिया पालाप ग्रहण करने योग्य मन से रहित होते हैं वे असंही हैं। चार इन्द्रिय तक सब असंही होते हैं पंचेन्द्रियों में जलका सर्प और कोई कोई तोता असंज्ञी होता है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपनी स्पर्शन, रसना, प्राण और चक्षु इन्द्रिय द्वारा चार इन्द्रिय जीव से दुगुनो दूरके पदार्थ को जान सकता है । उसको कर्णइन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय ८००० धनुष दूर का है। ___ संज्ञो पंचेन्द्रिय की स्पर्शन, रसना घ्राण इन्द्रियों का उत्कृष्ट विषय ९-६ थोजन दूरवर्ती है, कर्ण इन्द्रिय का १२ योजन का है और नेत्र इन्द्रिय का ४७२६३२ योजन है। षट् पर्याप्तयः ॥२७॥ मर्य-पर्याप्ति (शक्ति) ६ हैं। पाहारसरोरिदिय पज्जती मारणपारणभासमरणो। चत्तारि पंप छप्पिय .एइंचियनिमलसम्पारणं ॥
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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