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कटाक्ष, किरण, गाय श्रादि अनेक अर्थ हैं फिर भी गो शब्द से गाय को ही
जानना ।
शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार उसी क्रिया में परिणत पदार्थ को उस शब्द द्वारा ग्रहण करना एवंभूत नय है । जैसे गच्छति इति गौः (जो चलती हो सो गाय है) इस व्युत्पत्ति के अनुसार चलते समय ही गाय को गो शब्द द्वारा जानना एवंभूत नय है ।
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नय की शाखा को उपनय कहते हैं । उपनय के ३ भेद हैं - १ सद्भूत व्यवहार नय, २ असदुद्भुत व्यवहार नय, ३ उपचरित प्रसद्भूत व्यवहार नय । सद्भूत व्यवहार नय के दो भेद है - १ शुद्ध सद्भूत व्यवहार - जो शुद्ध गुण गुणी, शुद्ध पर्याय पर्यायी का भेद कथन करे, जैसे सिद्धों के केवल ज्ञान दर्शन आदि गुण हैं । २ प्रशुद्ध सद्भूत व्यवहार — जो अशुद्ध गुण गुणी तथा अशुद्ध पर्याय पर्यायी का भेद वर्णन करे, जैसे -- संसारी आत्मा की मनुष्य श्रादि पर्याय हैं ।
प्रसद्भूत व्यवहार नय के ३ भेद है -१ स्वजाति असद्भूत व्यवहारजैसे परमाणु बहु प्रदेशी है । २ विजाति प्रसद्भूत व्यवहार जैसे मूर्ति मतिज्ञान भूर्ति पदार्थ से उत्पन्न होता है, ऐसा कहना । ३ स्वजाति विजाति प्रसद्भूत व्यवहार - जैसे ज्ञेय (ज्ञान के विषय भूत ) जीव प्रजीव (शरीर ) में ज्ञान है, क्योंकि यह ज्ञान का विषय है, ऐसा कहना |
उपचरित प्रसद्भूत व्यवहार नय के भी ३ भेद हैं -१ स्वजाति उपचरित श्रसद्भूत व्यवहार - जैसे पुत्र स्त्री आदि मेरे है । २ विजाति उपचरित असदभूत व्यवहार नय - जैसे मकान वस्त्र आदि पदार्थ मेरे हैं । ३ स्वजाति विजाति उपचरित अद्भुत व्यवहार नय - जैसे नगर, देश मेरा है। नगर में रहने वाले मनुष्य स्वजाति (चेतन) है, मकान वस्त्र आदि विजाति (अचेतन) हैं ।
नय के दो भेद और भी किये हैं- १ निश्चय, २ व्यवहार |
जो प्रभेदोपचार से पदार्थ को जानता है वह निश्चय नय है । जैसे श्रात्मा शुद्ध बुद्ध निरञ्जन है ।
जो भेदोपचार से पदार्थ को जानता है वह व्यवहार नय है। जैसे जीव के ज्ञान आदि गुण हैं ।
प्रकाशरान्तर से इन दोनों नयों का स्वरूप यों भी बताया गया है—
• जो पदार्थ के शुद्ध अंश का प्रतिपादन करता है वह निश्चय तय है, जैसे जो अपने चेतना प्राणसे सदा जीवित रहता है वह जीव है ।
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