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________________ - - पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाले पर्यायाथिक नय के ६ भेद हैं १ अनादि नित्य पर्यायांथिक -जैसे सुमेरु पर्वत प्रादि पुद्गल पर्याय निस्य हैं । २ सादिनित्य पर्यायाथिक नय-जैसे सिद्ध पर्याय नित्य है । ३ उत्पाद व्यय ग्राहक पर्यायार्थिक नय -जैसे पर्याय क्षरण क्षण में नष्ट होती है । ४ सत्तासापेक्ष पर्यायार्थिक नय-जैसे पर्याय एक ही समय में उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप है। पर उपाधि निरपेक्ष शुद्ध पर्यायार्थिक नय-जैसे संसारी जीवों की पर्याय सिद्ध भगवान के समान शुद्ध है । ६ पर उपाधि सापेक्ष अशुद्ध पर्यायाथिक नय-जैसे संसारी जीवों के जन्म, मरण होते हैं । संकल्प मात्र से पदार्थ को जानने वाला नंगम नय है। उसके तीन भेद हैं १ भूत, २ भावी और ३ वर्तमान । भूत काल में वर्तमान का प्रारोपण करना भूत नेगम नय है जैसे दीपावली के दिन कहना कि 'प्राज भगवान महावीर मुक्त हुए हैं। भविष्य का वर्तमान में प्रारोपण करना भावी नंगम है जैसे अन्त भगवान को सिद्ध कहना। प्रारम्भ किये हुए कार्य को सम्पन्न हुना कहना वर्तमान नेगम है जैसे--चूल्हे में अग्नि जलाते समय यों कहना कि मैं चावल बना रहा हूं। पदार्थों को संगृहीत (इकट्ठ) रूप से जानने वाला संग्रह नय है। इस के दो भेद हैं.-१ सामान्य संग्रह-जैसे समात पदार्थ द्रव्यत्व की अपेक्षा समान हैं परस्पर विरोधी हैं । २ विशेष संग्रह जैसे-समस्त जीव जीवत्व की अपेक्षा समान हैं-परस्पर विरोधी हैं। ___ संग्रह नय के द्वारा जाने गये विषय को विधि-पूर्वक भेदं करके जानना - व्यवहार नय है । इसके दो भेद है १ सामान्य व्यवहार-जैसे पदार्थ दो प्रकार के हैं १ जीव, २ अजीव । २ विशेष व्यवहार नय-जैसे जीव दो प्रकार. के . हैं । .१..संसारी, २ मुक्त । वर्तमान काल को ग्रहण करने वाला ऋजसत्र नय है । इसके भी दो भेद हैं- सूक्ष्म ऋजुसूत्र, जैसे पर्याय एक समयवर्ती है 1 २-स्थल ऋणुसूत्र जैसे . मनुष्य पशु-यादि पर्याय को जन्म से मरण तक आयु भर जानना। संख्या, लिंग आदि का व्यभिचार दुर करके शब्द के द्वारा पदार्थ को अहण करना, जैसे विभिन्न लिंगवाची दार, (पु.), भार्या (स्त्री), कलत्र (न..) शब्दों के द्वारा स्त्री का ग्रहण होना। एक शब्द के अनेक अर्थ होने पर भी किसी प्रसिद्ध एक रूढ अर्थ को ही शब्द द्वारा ग्रहण करना । जैसे गो शब्द के (संस्कृत भाषा में) पृथ्वी, वाणी
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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