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(१२) . जो पदार्थ के मिश्रित रूप का प्रतिपादन करता है वह व्यवहार नय है । जैसे जिसमें इन्द्रिय (५) बल (३) आयु और श्वास उच्छवास ये यथायोग्य १० प्राण पाये जाते हैं या जो इन प्रारणों से जीता है वह जीव है।
नय प्राँशिक ज्ञानरूप हैं, अतः वे तभी सत्य होती है जबकि वे अन्य नयों की अपेक्षा रखती हैं। यदि वे अन्य नय की अपेक्षा न रक्खें तो वे मिथ्या नय हो जाती हैं।
कहा भी हैनिरपेक्षा नया मिथ्याः सापेक्षा वस्तुतीर्थकृत ।
यानी.--अन्य नयों की अपेक्षा न रखने वाली नय मिथ्या होती हैं, जो नय अन्य नयों की अपेक्षा रखती हैं वे सत्य नय होती हैं, उनसे ही पदार्थ की सस्य सिद्धि होती है।
नयानां लक्षणं भेलं वक्ष्ये नत्वा जिनेश्वरम् । खुर्नयारितमोनाशं मार्तण्डं जगदीश्वरम् ॥५॥ नयो वक्तुविवक्षा स्याद् वस्त्वशेष प्रवर्तते । द्विधासौ भिद्यते मूलाद् द्रव्यपर्यायभेदतः ॥६॥ नंगमः संग्रहश्चेति व्यवहार सूत्रको । शब्दसमभिरूढवंभूता नव नयाः स्मृताः ॥७॥ सद्भूतासभूतौ स्यातामुपचारतोऽप्यसद्भूताः। .. इत्युपनयास्त्रिभेदाः प्रोक्तास्तथैव तत्त्वज्ञैः ॥८॥ द्रव्याथि दशविध स्यात्पर्यायार्थी च षड्विधः। नैगमस्त्रिविधस्तत्र संग्रहश्च द्विधा मतः ॥६॥ व्यवहारर्जुसूत्रौ च प्रत्येको द्विविधात्मकः । शब्दसमभिरूद्वैवंभूतानां नास्ति कल्पना ॥१०॥ सद्भतश्च नयो द्वधाऽसद्भूतस्त्रिविधो मतः । उपचारात् सत्भूतः प्रोक्तः सोपित्रविध्यमाभजेत् ॥११॥ सर्वपारनयभेवानां भेदाः षट्त्रिंशदीरिताः।
एतन्निगद्यते तेषां स्वरूपव्याप्तिलक्षणम् ॥१२॥ पुनरध्यात्मभाषयानयावभ्यरन्त्य तत्र तावस्मालनयोद्योनिश्चयो व्यवहारश्च बामेसोपचारतया वस्तुनिश्चेता इति निश्चयः । भेदोपचारतया वस्तुव्यवह