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चतुविशतिस्तव, ३ - वन्दना, ४ प्रतिक्रमण, ५-- वेनयिक,
६ -- कृतिक्रम ७- दशकालिक, ८-- उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, १०-कल्पाकल्प, ११महाकल्प, १२ - पुण्डरीक, १३ - महापुण्डरीक और १४ - तिषिद्धिका ।
१ साधुओं के समताभाव रूप सामायिक का कथन करनेवाला सामायिक प्रकीक है ।
२ चौबीस तीर्थंकरों के स्तवन की विधि विधान बतलाने वाला प्रकरण के चतुविशतिस्तव है ।
३ पंचपरमेष्ठी की वन्दना करनेवाला शास्त्र 'यन्दना' प्रकोण क
४ देवसिक, पाक्षिक, मासिक श्रादि प्रतिक्रमण का विधान करनेवाला प्रतिक्रमण प्रकीर्णक है ।
५ दर्शन, ज्ञान, चारित्र, और उपचार विनय का विस्तार से विवेचन करनेवाला धिक प्रकीर्णक है । ६क्षास्त्र में हो वह कृतिकर्म
७ द्रव, पुष्पित श्रादि १० अधिकारों द्वारा मुनि के भोज्य पदार्थों का विवरण जिसमें पाया जाता है वह दशकालिक है ।
ត उपसर्ग तथा परिषह सहन करने आदि का विधान उत्तराध्ययन प्रकीरण क में है ।
९ जिसमें दोषों के प्रायश्चित्त आदि का समस्त विवरणं हूँ वह कल्पव्यवहार है
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१० सागर अनागार के योग्य अयोग्य आचार का जिसमें विवेचन पाया जाता है वह कल्पकल्प प्रकीरण के है ।
११ दीक्षा, शिक्षा, गरणपोषण, संलेखना श्रादि ६ काल का जिसमें कथन पाया जाता है वह महाकल्प है।
१२ भवनवासी ग्रादि देवों में उत्पन्न होने योग्य तपश्चरण आदि कारण जिसमें है वह पुण्डरीक है ।
१३ भवनवासी आदि देवों की देवियों की उत्पत्ति के योग्य तपश्चर्या आदि की विधिविधान महापुण्ड रोक में है ।