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________________ ११-कल्याणवाद पूर्व में तीर्थंकरों के ५ कल्याणकों, षोडश भावना आदि का वर्णन है, इसमें २६ करोड़ पर हैं। १२-प्राणवाद में १३ करोड़ पद हैं, इसमें आठ प्रकार के आयुर्वेद प्रादि वैद्यक आदि का विवरण है। १३-क्रिया विशाल पूर्व में संगीत छन्द प्रादि पुरुषों को ७२ कसा, स्त्रियों के ६४ गुण आदि का वर्णन है। इसमें ६ करोड़ पद हैं। .. १४-त्रिलोक बिन्दु सार में १२ करोड ५७ लाख पद हैं । इसमें लोक का, मोक्ष का स्वरूप, ३६ परिकमं आदि का वर्णन है । दसचोइस अठारस बारस सयं दोंस पुग्वेस । सोलसवीसतोसपण्णरस बत्थु ।।५।। एएमि पुग्वारणं एवदियो बत्थुसग हो भणियो। गाणं तुम्वासेरणं दसवस वत्थू परिणयकारिण ॥६॥ एक्केक्कम्मिय वत्यू वीस फीस पाहुडा भणिया । विसमसमाहिय वत्थू पुग्वे पुरण पाहु.हि समा ॥७ पुवारण वत्थुसयं पंचारपउदि हवंति पत्थूरिण । पाहुड तिपिण सहस्सा नवयसया चोद्दसारणं तु ॥६॥ अर्थ-चौदह पूर्षों की कमशः १०-१४-८-१८-१२-१६-२०-३०-१५१०.१०-१०-१०-१२ वस्तु (अधिकापूर) यानी समस्त १६५ वस्तु होती हैं एक एक वस्तु के २०-२० प्रामृत (प्रकरण) होते हैं, अतः १४ पूर्वो के समस्त प्राभूत ३६०० होते हैं। दृष्टिवाद का पांचवां भेद धूलिका है उसके ५ भेद हैं-बलगता, २स्थलगता, ३ मायागता, ४ आकाशगता मोर ५ रूपगता । जलगता में जल में गमन, जल स्तम्भन के मंत्र तंत्र प्रादि का वर्णन है। स्थलगता में मेरु कुलाचल, भूमि आदि में प्रवेश करने, शीघ्र गमन, प्रादिक सम्बन्धी मन्त्र तन्त्र प्रादि का वर्णन है। भाकाशगता में प्राकाश गमन पादि के मन्त्र तन्त्र आदि का कथन है । मायागता में इन्द्रजाल सम्बन्धी मन्त्र तन्त्र मादि का कथन है। रूपगता में सिंह प्रादि के अनेक प्रकार के रूप बनाने का वर्णन है । इन पांचों चूलिकाओं के १०४६४६००० पद हैं। चतुर्दश प्रकीर्णकानि ॥१२॥ प्रयं-प्रवाह भतशान के १४ भद।१-सामायिक, २---
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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