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________________ ( १४२ ) (सदा निरावरण रहने वाला) है । यदि इस ज्ञान पर भी कर्म का आवरण होता तो वह निगोदिया जीव ज्ञान--शून्य जड़ हो विशेष इतना है कि सूक्ष्म लब्धिश्रपर्याप्त अम्भव अपने ६०१२ भवों में भ्रमण करके अन्तिम द्वारा ग्रहण करने वाले जीव के प्रथम मोड़े के नामक तज्ञान होता है। इसको 'लध्ध्यक्षर' श्रुतज्ञान और प्रक्षर का अर्थ 'अविनश्वर' है। कभी नष्ट नहीं होता । जाता । निगोदिया जीव अन्तर्मुहूर्त में पर्याप्त शरीर को तीन मोड़ों समय वह सर्व - जघन्य पर्याय भी कहते हैं । लब्धिका श्रर्थं यानी यह जघन्य श्रु तान इस जघन्य श्रुतज्ञान ( पर्याय ज्ञान ) के ऊपर अनन्न भाग वृद्धि, श्रसंख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागवृद्धि, संख्यात गुणवृद्धि, श्रसंख्यात गुणवृद्धि, अनन्त गुण वृद्धि रूप ६ प्रकार की वृद्धियां असंख्यात वार (श्रसंख्यात लोक प्रभाग ) होने पर 'क्षर' श्रुतज्ञान होता है। पर्याय श्रुतज्ञान से अधिक और अक्षर श्रुत ज्ञान से कम जी श्र ुतज्ञान के बीच के असंख्यात मेद हैं वे सब 'पर्यासमास' कहलाते हैं । इस तरह पर्याय और पर्याय समास ये दो श्रुतज्ञान अनक्षरात्मक हैं । शेष ऊपर के सब ज्ञान अक्षरात्मक हैं। पर्यायज्ञान अक्षर ज्ञान के अनन्त भाग प्रमाण है । अक्षर श्रुतज्ञान सम्पूर्ण अक्षरात्मक श्रुतज्ञान का मूल है । अक्षर ज्ञान के ऊपर एक एक अक्षर ज्ञान की वृद्धि होते होते जब संख्यात अक्षर रूप वृद्धि हो जाती है तब 'पद' नामक श्रुतज्ञान होता है। अक्षर ज्ञान से ऊपर और पद ज्ञान से कम बीच के सख्यात भेद 'प्रक्षर समास' नामक श्रुतज्ञान है । पद शब्द के तीन अर्थ है- १ अर्धपद, २-प्रमाण पद, ३ मध्यम पद । 'पुस्तक पढ़ो, भोजन करो' आदि अनियत प्रक्षरों के समूह रूप किसी अभिप्राय विशेष को बतलाने वाला 'अर्थ पद' होता है । क्रिया रूप ( तिन्हत ) और अक्षर समूह तथा संज्ञारूप ( सुबन्त ) अक्षर समूह पद भी इसी भर्थपद में गर्भित हैं। विभिन्न छन्दों के प्रादि नियत अक्षर समूह रूप प्रमाण पद होता है जैसे 'नमः श्री वर्द्धमानाय' । तथा १६३४८३०७८८६ सोलह अरब चौंतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी ग्रक्षरों का एक मध्यम पद होता है। श्रुतज्ञान में इसी मध्यम पद को लिया गया है। ·
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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