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________________ (३४३ ) एक पद के ऊपर एक एक अक्षर की वृद्धि होते होते जब संख्यात हजार पदों की वृद्धि हो जावे तब 'संघात' नामक श्रु तज्ञान होता है। संघात सज्ञान से कम और पद से अधिक जितने श्र तज्ञान हैं वे 'पद समास' कहलाते हैं । संघात श्रुत शान चारों गति में से किसी एक गतिका निरूपण करने वाले अपुनरुक्त मध्यम पदों का समूह रूप होता है। संघात श्रु तज्ञान के ऊपर एक एक अक्षर की वृद्धि होते होते अब संख्यात हजार संघास की वृद्धि हो जाये तब चारों गतियों का विस्तार से वर्णन करने वाला 'प्रतिपत्ति' नामक श्रु तज्ञान होता है। सांघात और प्रतिपत्ति ज्ञान के बीच के भेद' 'संघातसमास' कहलाते हैं । प्रतिपत्ति अत ज्ञान के ऊपर अक्षर अक्षर की वृद्धि होते होते जब संख्यात हजार प्रतिपत्ति की वृद्धि हो जाती है तब चौदह मार्गणाओं का विस्तृत विवेचन करने वाला 'अनुयोग' नामक श्रुतज्ञान होता है । प्रतिपत्ति और अनुयोग के बीच के जितने भेद हैं ने 'सिसि गर' दहलगे हैं। अनुयोग ज्ञान के ऊपर पूर्वोक्त रूप से वृद्धि होते होते जब संख्यात. हजार अनुयोगों की वृद्धि हो जाती है तब 'प्राभूत प्राभृतक' नामक श्रुतज्ञान होता है । अनुयोग और प्राभृत प्राभुतक ज्ञान के बीच के मेद अनुयोग समास कहलाते हैं। इसी प्रकार अक्षर अक्षर की वृद्धि होते होते बब चौबीस प्राभृत प्राभृतक की वृद्धि हो जाय तब 'प्राभूत' ज्ञान होता है। दोनों के बीच के . भेद प्राभूत प्राभूतक समास हैं । बीस प्राभूतप्रमाण 'वस्तु' नामक श्रु तज्ञान होता है । प्राभूत और वस्तु के बीघ के भेद प्राभूत समास हैं। वस्तु ज्ञान में पूर्वोक्त रूप से वृद्धि होते होते दश प्रादि १६५ एक सौ पिचानवै वस्तु रूप वृद्धि होती है तब पूर्व नामक श्रुतज्ञान होता है। वस्तु और पूर्व के मध्यवर्ती श्रु तज्ञान वस्तु समास कहलाते हैं । पूर्व ज्ञान से वृद्धि होते होते पूर्ण श्रुतज्ञान के मध्यवर्ती भेद पूर्वसमास कहलाते हैं । इस तरह अक्षरात्मक श्रु तज्ञान के १८ भेद हैं। इसको ही भावश्रुत भी कहते हैं। प्रक्षरात्मक श्रुतज्ञान द्वादश ( बारह ) भंग रूप है उसमें समस्त एक..
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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