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( ३६) अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, तथा लोभ कषाय के निमित्त होने से अज्ञान कहते हैं। इन पाठ ज्ञानों में मति, श्रुत, कुमति, तथा कुश्रुत, ये ४ परोक्ष प्रमाण हैं। अवधि, मन:--पर्यय, विभंग-अवधि ये तीन एक देश प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । केवल ज्ञान सकल प्रत्यक्ष प्रमाण है और आत्मस्वभाव' गुण है। शेष ज्ञान विभात्र गुण है । उसमें तीनों अज्ञान हेय हैं । क्षायोपशमिक सम्यग्ज्ञान चतुष्टय परम्परा से उपादेय हैं, क्षायिक केवल ज्ञान ज्ञान साक्षात उपादेय है।
मतिज्ञानं त्रिशतषत्रिशभेदम् ।। मति ज्ञान के तीन सौ छत्तीस (३३६) भेद हैं ।
मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता, अभिनिबोध, ये मतिज्ञान के ही नामान्तर हैं, क्योंकि ये पांचों ही मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होते हैं।
विशेषार्थ-इन्द्रिय और मन की सहायता से जो अवग्रह आदि रूप ज्ञान होता है उसे मति कहते हैं । न्याय शास्त्र में इस ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा है, क्योंकि लोक व्यवहार में इन्द्रिय से होनेवाला ज्ञान प्रत्यक्ष माना जाता है। परन्तु वास्तव में वो पराधीन होने से यह ज्ञान परोक्ष ही है। पहले जानी हुई वस्तु को कालान्तर में स्मरण करना स्मृति है । जैसे पहले देखे हुए देवदत्त का स्मरण करना 'यह देवदत्त' यह स्मृति है । संज्ञा का दूसरा नाग प्रत्यभिज्ञान है । वर्तमान में किसी वस्तु को देखकर पहले देखी हुई वस्तु का और वर्तमान वस्तु का जोड़ रूप ज्ञान होना प्रत्यभिज्ञान है । न्याय शास्त्र में प्रत्यभिज्ञान के अनेक भेद बतलाये हैं, जिनमें चार मुख्य हैं--एकत्व प्रत्यभिज्ञान, सादृश्य प्रत्यभिज्ञान, तद्विलक्षण प्रत्यभिज्ञान और तत्प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान । किसी पुरुष को देखकर 'यह वही पुरुष है जिसे पहले देखा था ऐसा जोड़ रूप ज्ञान होना एकत्व प्रत्यभिज्ञान है । वन में गवय ( रोझ) नामक पशु को देखकर ऐसा ज्ञान होना कि यह गवय मेरीगौ के समान है, यह सादृश्य प्रत्यभिज्ञान है। भैस को देखकर 'यह भैस मेरी गौ से विलक्षण है' ऐसा जोड़ रूप ज्ञान होना तद्विलक्षण प्रत्यभिज्ञान है । निकट को वस्तु को देखकर पहले देखी हुई बस्तु के स्मरण-पूर्वक ऐसा जोड़ रूप ज्ञान होना कि इससे वह दूर है. ऊँची है या नीची है, इत्यादि ज्ञान को तत्प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान कहते हैं।
चिन्ता का दूसरा नाम तर्क है । 'जहां अमुक चिन्ह होता है वहां उस उस चिन्हवाला भी होता हैं ऐसे ज्ञान को चिन्ता या तक कहते हैं। न्यायशास्त्र में व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं और साध्य के अभाव में साधन के