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रखनेको नाम कहते हैं । काष्ठ, पाषाण, पुस्तक, चित्र कर्मादि में यह अमुक वस्तु है, ऐसा निश्चय करना स्थापना है । गुण पर्याय से युक्त को द्रव्य कहते हैं। वर्तमान पर्यायोपलक्षित द्रव्य को भाव कहते हैं। इसका भेद इस प्रकार है।
१-नाम जीव, २-स्थापना जीव, ३-द्रव्य जीव, तथा ४-भाव जीव, यै चार प्रकार के हैं। संज्ञा रूप से जीव का व्यवहार नाम जीव है। सद्भाव तथा असद्भाव भेदों में प्राकार सहित काष्ठ पाषाण प्रतिमा में यह हाथी आदि है, इस प्रकार स्थापना करना सद्भाव स्थापना है तथा शतरंज के गोटे प्रादि में यह हाथी प्रादि है, ऐसा कहकर स्थापना करना असद्भाव स्थापना जीव है। द्रव्य जीव दो प्रकार है, आगम द्रव्य जीव और नो आगम द्रव्य जीव । जीव पर्याय में उपयोग रहित जीव पागम द्रव्य जीव है।
नो पागम द्रव्य जीव तीन प्रकार का है। जाननेवाले का (ज्ञायक) शरीर, न जाननेवाला शरीर, इन दोनों से रहित । उसमें जाननेवाला शरीर प्रागत, अनागत तथा वर्तमान से तीन प्रकार का है।
भाव जीव दो प्रकार का है नो-पागम भाव जीव और पागम भाव जीव इसमें नो पागमभाव जीव को समझकर उपयोग से युक्त प्रात्मा प्रागम-भाव जीव है, नो भागम भाव जीव के दो भेद हैं । उपयुक्त और तत्परिणत । उसमें जीव आगम के अर्थ में उपयोग सहित जीव उपयुक्त कहलाता है ! केवल ज्ञानी को तत्परिपात कहते हैं। इसी तरह अन्य पदार्थो में भी नाम निक्षेप विधि से योजना की गई है।
विविध प्रमाणम् ॥६।।। प्रमाण दो प्रकार है परोक्ष और प्रत्यक्ष । शरीर इन्द्रिय प्रकाश आदि के अवलम्बन से पदार्थों को अस्पष्ट जानना परोक्ष प्रमाण है। स्व-प्रात्मशक्ति से स्पष्ट जानना प्रत्यक्ष प्रमाण है।
पंच सज्ज्ञानि ७॥ ___ मति, श्रत, अवधि, मन पर्यय ज्ञान तथा केवल ये पांच सम्यग्ज्ञान हैं। इन्हीं के द्वारा सामान्य विशेषात्मकः वस्तु को संशय, विमोह, विभ्रम रहित होकर ठीक जानने के कारण तथा निरंजन सिद्धात्म निज तत्व, सम्यक श्रद्धान जनित होने के कारण इसे सम्यग्ज्ञान कहा गया है।
त्रीणिकुज्ञानानि ॥६॥ कुमति, कुन त, विभंग ऐसे तीन कुज्ञान हैं । कड़वी तुम्बी के पात्र में रखते हुए दूध को बिगाड़ने के समान होने के कारण मिथ्या दृष्टि के उपर्यत शान मिथ्याज्ञान कहलाते हैं। पहले के कहे हुए ३ सम्यग्ज्ञानो कोमिथ्य तत्व