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________________ ( ३३७ ) -.-: IML तथा अपर्याप्ति ऐसे एकान्तानुवृद्धि योगरूप, भन्त्र का अन्त करने योग, परिणा योग, ऐसे योग के तीन भेद हैं। विकल्प रूप मनो वचन काय रूप योगत्रय पुनः बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा के भेद से प्रात्मा तीन प्रकार का है जीव समास, मार्गणा और गुणस्थान की अपेक्षा से भी तीन प्रकार है। जीव सत्व, २ पुद्गलादि पंचध्य अजीव तत्त्व, ३ शुभाशुभ कर्माग द्वार रूप प्रास्रब तत्व, ४ जीव और कर्म इन दोनों के अन्योन्यानुप्रवेशात्म बंध तत्त्व. ५ व्रत समिति गुप्ति आदि द्वारा कर्मास्त्रब रोकने वाला संवर तत्र ६ मविपाक रूप से कममल को पिघलाने वाला निर्जरा तत्त्व, ७ स्व-शुद्धार तत्त्व भावना से सकल कर्मों से निर्मुक्त होना मोक्षतत्व है । । इन सभी फलों का कारणभूत होने के कारण सर्व प्रथम जीव तर का ग्रहण किया गया है । उसका उपकारी होने के कारण तत्पश्चात् अजी का विधान किया है । तद्भव विषय होने के कारण उसके बाद पात्रय व ग्रहण किया गया है। उसी के अनुसार कर्मों द्वारा बन्ध होने के कारण उस बाद बन्ध का ग्रहण किया गया है । आस्रव का निरोध होने के कारण बंध बाद संबर कहा गया है और संवर के निकट ही निर्जरा का विधान किया गर है जोकि बन्ध की विरोधी है तथा अंत में सकल कर्म मलों का नाश होक कर्मों से मुक्त हो जाने के कारण अंत में मोक्षतत्त्व को कहा गया है। इस का नाम निज निरंजन शुद्धात्म उपादेय मोक्ष है । . नव पवार्थाः ॥४॥ उपर्युक्त सात तत्त्वों में यदि पाप और पुण्य' इन दोनों को मिला दिय जाय तो नौ पदार्थ हो जाते हैं, सो इस प्रकार हैं: १जीव पदार्थ, २ अजीव पदार्थ, ३ प्रास्रव पदार्थ, . ४ बंध पदार्थ, पुण्य पदार्थ, ६ पाप पदार्थ, ७ संबर पदार्थ, ८ निर्जरा पदार्थ और 8 वां मो पदार्थ है । इनका पदार्थ नाम इसलिए पड़ा कि ये ज्ञान के द्वारा परिच्छेद हो में समर्थ हैं। जीव, पुद्गल के संयोग से होने वाले प्रास्रव, बंध, पुण्य और पाप चार पदार्थ हेय होते हैं । उन दोनों के अलग होने से संवर, निर्जरा तथा मो ये तीन पदार्थ उपादेय होते हैं । चतुर्विधो न्यास ।। नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भाव ऐसे न्यास (निक्षेप) के चार भेद हैं । इन निमिन्न से जीवादि को जाना जाला है । जास्यादि निमित्तान्तर निरपेक्ष न -
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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