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________________ कर ( ३३४ ) निमित्तम तरं तत्र योग्यता वस्तुनिश्चिता ।। बहिनिश्चयकालस्तु निश्चितं तत्त्वशिभिः ।२१ किप्पवियेण बहुणा चे सिद्धागर परागये कावे ।१। प्रत्येक द्रव्य अपने परिणामन में उपादान रूपसे अप ही अंतरंग उपादान कारण होता है । उस परिणमन में बहिरंग सहकारी कारण काल द्रव्य बसलाया है। . पंचास्तिकायाः ॥२॥ जीव, २ पुद्गल, ३ धर्म, ४ अधर्म, और ५ आकाश इन पांचों द्रव्यों को अस्तिकाय कहते हैं । ये द्रव्य सदा विद्यमान (मौजूद) रहने के कारण 'अस्ति' कहलाते हैं और शरीर के समान बहुप्रदेशी होने के कारण 'काय' कहलाते हैं । अतः इन्हें अस्तिकाय कहते हैं । एवं छन्वेयमिदं जीवाजीवप्पभेदवो दव्यं । उत्तं कालविजुत्तं गायव्वा पंच अस्थिकाया दू ॥ प्रत्येक जीव के, धर्म द्रव्य के तथा अधर्म द्रव्य के और लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश होते हैं । अलोकाकाश के अनन्त प्रदेश हैं। पुद्गल' द्रव्य के संख्यात, असंख्यात, अनन्त प्रदेश हैं । काल द्रव्य पृथक पृथक अणु रूप होने से . एक प्रदेशी है, अत: उसको 'काम नहीं कहा गया । एक प्रदेशी पुद्गल परमाणु के अस्तिकायरब का अर्थ यह है कि स्निग्ध रूक्ष गुण के कारण बहु-प्रदेशी होने की शक्ति उसमें रहने से यह उपचार से अस्तिकाय कहलाता है । षड़ द्रव्य पंचास्तिकाय की चूलिका को कहते हैंपरिणामजीवमुत्तं सपदेसं एयखेतकिरियाय । रिणच्चं कारगतक्कं तासम्बगदमिद रम्ह्यिपदेण ॥७॥ अर्थ:--परिणाम स्वभाव विभाव पर्यायापेक्षा से जीव पुद्गल द्रव्य परिणामी हैं, शेष चार द्रव्य विभाव व्यंजन पर्याय भाव की मुखवृत्ति से अपरिरणामी हैं। व्यंजन पर्याय का लक्षण बताते है: जो स्थूल, कुछकाल के स्थायी, वचन के विषय भूत तथा इन्द्रियज्ञानगोचर है वह व्यंजन पर्याय है जीव शुद्ध निश्चयनय से अनंत ज्ञान दर्शन भाव. शुद्ध चैतन्य प्रारण सहित है । अशुद्ध निश्चयनय से रागादि विभाव प्राणों से और अनुपरित सद्भुत व्यवहारनय से इन्द्रिय, बल, आयु उच्छ्वास इन चार प्राणों से प्रात्मा
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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