________________
( ३२३ ) प्रदेश में जो एक एक कालारण स्थित है वही निश्चयकाल है और उसों के निमित्त से वर्तना आदि होते हैं ।
एकप्रदेशियप्पुद-। नेकरिवमुख्य काल मंलोकदोळि -1 दोकाशवप्रदेशदो। कतिसदो रलराशियतेरदि ॥५॥
जीव आदि सभी द्रव्यों की उत्पत्ति विनाश रूप अर्थ-पर्याय उत्पन्न करना अगुरुलघु गुरण है । अन्य वादी कहता है कि यदि ऐसा कहोगे तो बीय प्रादि द्रव्य रूप न होकर सदा पर्याय ही समझने चाहिए । किन्तु ऐसा नहीं है। जैसे पानी के अन्दर लहर उत्पन्न करने के लिए हवा निमित्त कारण है उसी प्रकार द्रव्य में पर्याय को उत्पन्न करने के लिए अन्य निमित्त कारण अपेक्षित है। इसीलिये वह अर्थ-पर्याय है, व्यञ्जन-पर्याय नहीं । अर्थ-पर्याय एक ही समय में उत्पत्ति व विनाश वाला है । द्रव्य रूप से नित्य है और विशेष रूप से वह परमार्थकाल कहलाता है। पुद्गल का परमाणु अपने प्रदेश पर मन्दगति से जितने काल में जाता है उतने काल को समय कहते हैं । परमाणु एक गाय में दाम मे ? - जुमला है यह व्यवहार काल है ।
जैसे कोई मनुष्य मन्दगति से दिन में एक कोश जाता है कोई दूसरा व्यक्ति विद्या के प्रभाव से एक ही दिन में १०० (सौं) कोश जाता है यद्यपि पहले की अपेक्षा दूसरे की गति १०० दिन की है, किन्तु वह १०० दिन न कहकर १ ही दिन कहलाता है ।
निश्चय काल
जैसे वास्तविक सिंह के होने पर ही मिट्टी पत्थर आदि का व्यावहारिक (नकली)सिंह (मूर्ति चित्र) बनाया जाता है। असली इन्द्र (देवों का राजा) है तभी उसका व्यवहार मनुष्यों में भी नाम आदि रखकर किया जाता है, इसी प्रकार सूर्य चन्द्र आदि के उदय अस्त आदि की अपेक्षा से जो व्यवहार काल प्रयोग में लाया जाता है, उस व्यवहार काल का प्राश्रयभूत जो पृथक पृथक अणु रूप लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर स्थित कालाणु है वह निश्चय काल है। वह निश्चय काल ही प्रत्येक द्रव्य के प्रति-समय के पर्याय के परिवर्तन में सहायक कारण है । वह यद्यपि लोकाकाश में है किन्तु अलोकाकाश के पर्याय परिवर्तन में भी सहायक है जैसे कि कुम्हारके चक्र (चाक) के नीचे केवल मध्यभाग में रहने वाली कीली समस्त चक्र को चलाने में कहायक होती है।