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________________ ( २३१ ) से, दूसरे को पानी से और तीसरे को सुई से भर दिया जाय इसके बाद वे तोना घड़े केवल एक राष्ट्र के घड़े में ही समा जाते है, अंडी के दूध से भरे हुए घड़े में शहद से परिपूर्ण दूसरा घड़ा भी समाविष्ट हो सकता है, चावल से भरे घड़े में दही का भरा हुआ घट सभा सकता है तथा नागगद्यान श्रर्थात् तराजू में हजारों तोले स्वर्ण समाजाता है उसी प्रकार आकाश द्रव्य में अवगाहन शक्ति विद्यमान रहने के कारण वह अपने अन्दर असंख्यात प्रदेशी धर्माधर्म द्रव्यों को, अनन्त परमाणु वाले पुद्गल द्रव्य को तथा लोकाकाश प्रमारण गणना वाले काला को गूढ़ रूप से अवकाश देने में समर्थ रहता है । प्रदेश का लक्षणः - पुद्गल का परमाणु जितने प्रकाश में रहता है वह प्रदेश है | वह प्रदेश न तो अग्नि से जलने वाला, न पानी से भीगनेवाला, न वायु से सूखनेवाला तथा न कीचड़ में पड़कर सड़नेवाला है। न वज्र से टूटनेवाला हूँ तथा प्रत्येक द्रव्य भी कभी नाश न होकर सदा स्थिर रहनेवाला है । श्रवगहन शक्तिपुळ्ळ दु । भुवनवोळारय् दुनोळ हडाकाशयेन । सविशेष विदमशम- दवकाशंगोट्टडेदु द्रव्यं गलिगं |४| और तात्पर्य यह है कि आकाश की पर्याय होती है, व्यञ्जन पर्याय नहीं, पर्याय से वह एक ही समय में उत्पत्ति व विनाश सहित है । द्रव्यार्थिक नय से वह नित्य है । तथा धर्म श्रधर्म ग्राकाश अपने में समान होकर काल से प्रवर्तते हैं । धर्मधर्मं तो केवल वाह्य उपचार वर्तते हैं । अर्थात् सभी द्रव्य आकाश द्रव्य में समाविष्ट हो जाते हैं आकाश अपने को स्वयमेव आधारभूत है । धर्म द्रव्य और अधर्मं द्रव्य समस्त लोकाकाश में पूर्ण व्याप्त हैं । जैसे मकान के एक कोने में घड़ा रक्खा जाता है उस तरह धर्मप्रधमं द्रव्य नहीं रहते, पर जैसे तिल में तेल पाया जाता है उसी प्रकार दोनों द्रव्य समस्त लोकाकाश में पाये जाते हैं । . शंका-यदि धर्मादि द्रव्यों का प्रकाश द्रव्य आधार हूं तो आकाश द्रव्य का आधार क्या है ? समाधान - प्रकाश का आधार अन्य कोई नहीं, वह स्वयं ही अपना श्राधार है । वह सब से बड़ा है । शंका- यदि श्राकाश अपना हो आधार है तो धर्मादि द्रव्यों को भी अपने आधार होना चाहिए, पर यदि धर्मादि द्रव्यों का ग्राधार कोई अन्य द्रव्य है तो प्रकाश का भी कोई अन्य आधार होना चाहिए
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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