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________________ ( ३३० ) एक ही समय में उत्पत्ति विनाश वाला है, द्रव्य स्वरूप से नित्य है । भव अर्थ - पर्याय के स्वरूप को कहते हैं : ܀ लघु हुरा के कारण परिणमनात्मक जो षडवृद्धि एक ही हानि वृद्धि होती है सो अर्थ पर्याय है १- अनन्त भाग वृद्धि, २ - असंख्यात भाग वृद्धि ३ - संख्यात भाग वृद्धि, ४ संख्यात गुण वृद्धि, ५ - प्रसंख्यात गुण वृद्धि तथा ६ - अनन्त गुण वृद्धि ये ६ प्रकार की षड् वृद्धि कहलाती हैं । १ - अनन्तभाग हानि, २ - प्रसंख्यात भाग हानि, ३ - संख्यात भाग हानि, ४- संख्यात गुण हानि, ५ - प्रसंख्यातगुण हानि तथा अनंत गुण हानि, ये षडहानियां हैं प्रनाद्यनिधने द्रव्ये स्वपर्याया: प्रतिक्षणम् + उन्मज्जन्तिनिमज्जन्ति जलकल्लोलवज्जले ॥ इनिदरसतत्वरूचियि । दिनिदिक्कु तत्व निर्नयं वळिकदरि ॥ दिनिदात्मोत्थिक सुखमि । तिनिनिदे से बिसलुकि दरिनयसार तेवं |२| - इस प्रकार द्रव्य गुण पर्याय से धर्मद्रव्य को कहा गया है । और इसी तरह अधर्म द्रव्य का भी कथन किया जाता है । गुणों से अन्तरंग स्थिति परिणत हुए जीव पुद्गल की स्थिति का अधर्म द्रव्य बहिरंग सहकारी कारण होता है जैसे अन्तरंग स्थिति परिगत होकर मार्ग में चलनेवाले मनुष्यों के लिए वृक्षादि अपनी छाया देकर उन्हें ठहराने में बहिरंग सहकारी होते हैं । गतिग स्थितिकारण । मतिशयद देरडुमल्ले धर्माधर्म || मतिवंतररिषु भाविसे । अतम दुसंवित्तियागविवकु मेवगेयं ॥ अब आगे श्राकाश द्रव्य का लक्षण कहते हैं:- श्राकाश एक प्रखण्ड द्रव्य है, किन्तु यदि उसे परमाणुओं के द्वारा नापा जाय तो वह फैले हुए श्रनन्त परमाणुओं के बराबर होता है और सभी द्रश्यों को अवकाश देना श्राकाश द्रव्य का उपकार है । यहां पर शंका होती है कि एक ही प्रकाश में अनेक द्रव्य कैसे समा जाते हैं लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों में अनन्त परमाणुत्रों तथा सूक्ष्म स्कन्धों का आवास होता है। यह कैसे है, इसे दृष्टान्त देकर समाधान किया जाता है । जिस प्रकार मिट्टी के तीन घड़ों में से क्रमशः पृथक पृथक, एक को राख
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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