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र अनुभव करनेवाले, खवगसे ढिमारूढा-क्षपक श्रेणी चढे हुए, भागवताहनिज शुद्ध निश्चयात्म-ध्यानोपयोग युक्त होकर, तेह-वे, सिज्झन्ति सिद्ध पर को प्राप्त होते हैं, तहा-उसी तरह द्रव्य से पुरुष, सेसोदयेरण-विभाव से स्त्री बेद नपुंसक वेद के उदय से युवत परमात्मध्यानोपयोग में रत रहनेवाले मोक्षसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। सफल विमल केवल ज्ञानी दर्शनानन्त-सुख · वीर्यादिक के अधिपति ऐसे भगवान' जिनेश्वर घाति कर्म के निरवशेष क्षय से प्राप्त हए शुभ और शुद्ध ऐसे कर्म और नोकर्म के विशिष्ट वर्गणाओं के द्वारा होनेवाला कर्म नोकर्म आहार करते हैं, इसके अलावा जो चार प्रकार के आहार हैं वे केवली भगवान के नहीं हैं 1 द्रव्य स्त्री के तद्भव मोक्ष की माप्ति का अभाव है। ऐसा समझकर कभो इसके प्रति विवाद नहीं करना चाहिए। ऐसा ससझकर सर्व संग परिग्रहसे रहित निग्रंथ लिंग ही मोक्ष के लिए कारण है और स्वरूपोपलब्धि ही मुक्ति है और निज नित्यानन्दामृत सेवन ही मोक्ष फल है ऐसा निश्चय करना चाहिए।
नाना जीवो नाना कम्मं नाना विहोह बेलदि । तम्हामयनविबादं सगपर समयेषु बज्जज्जो ॥१६॥ जं अण्णाणी कम्मं खवेइ भवसहस्सकोडोहि । तपणाणोतिय गुत्तो खयेइ उस्सासमेत न ॥२०॥ कुशलस्सतसोणि उरणसस्स संजमो समपरस्सविरग्यो। सुदभावरणस्स तिणि सुदभवाणं कुरणहं ॥२१॥ समसत्तुबंधुवग्गो समसुहदुःखो पसंसरिंगदसमो। समलेरण वकंच गाविय जीवियमरणे समो समरणो २२१ एअग्गगदो समणा ए एण्णानित्तिदेसू अट्ठसु। -रगस्थित्ती प्रागमदो पागम चेत्तो तदो छट्ठो ॥२३॥
श्रमरण उत्तम पात्र है। तथाहि श्रमणाः सर्वेभ्यः ज्येष्ठा: वरिष्ठाः, शुद्धातिसमाधिनिष्ठत्वात् नित्यानित्यवस्तुविवेकित्वात् समसमाधिसंपन्नत्वात् अत्रामुत्र भोगकांक्षारहितत्वात् तत्वयाथोल्पैकवदित्वात् युक्त्या विचारवत्त्वात् तत्त्वाध्यात्म-श्रवणाधिमत्वात् अनुक्त साबनं तदुक्त साधनं यथा संप्रतिपन्ने पोगी तदा चैते श्रमणाः । तस्मात्सर्वेभ्यः श्रेष्ठाः भवन्ति तथा श्रमसः सर्वेभ्यः उत्कृष्टाः विशिष्टाश्च तत्त्वाध्यात्म्यप्रतिपादकत्वात् ।